Tuesday, July 30, 2013

बूढ़ा नीम

Bundi

बारिश की फुहारों से
भीगी धरती में
चारों ओर नए-नए अंकुर फूट रहे हैं।
हरियाली अपना साम्राज्य फैला
बन बैठी है धरती की महारानी
बूढ़ा नीम अंतिम पड़ाव पर सोच रहा है,
कल मैं रहूँ न रहूँ
मुझे काट-पीट कर,
कुछ शाखाओं को जलाया जाएगा,
कुछ से किसी की घर की चौखट बन जाऊंगा,
कहीं किसी बीमार की दवाई बन जाऊंगा,
हर पल किसी के काम ही आऊँगा
फिर भी हर पल अपने नए रूप में,
मैं देख सकूँगा पृथ्वी का नित नया श्रृंगार …
- साधना

Thursday, July 25, 2013

मेरा पागल मन

Psalm 34:18 (Clouded Heart)

मेरा पागल मन जो उड़ा करता है
सुनहरे पंखो पर होकर सवार,
आकाश को छू कर, फिर ज़मी पर भी चलता है
सबसे आगे भीड़ में बार-बार,
आसमान से जमीं तक की ऊँचाइयों को
बार-बार नाप कर बन जाता है इस प्रकृति का राज़दार
सूरज, चाँद, सितारों को हमजोली बना
उनके साथ करता कही अनकही बातें,
कभी हमजोली बन खेलता, कभी झगड़ता, कभी मान भी जाता
चांदनी रातो में सो कर खो जाता सुनहरे सपनो में,
सुबह होने पर सूरज गुदगुदा कर उठाता,
देखने के लिए  फिर से नए स्वपन
और जानने के लिए नए-नए राज़…

 - साधना

Wednesday, July 17, 2013

परिहास का दुष्परिणाम

Brahmasarovar, Kurukshethra

द्वारका के पास वन में घूमते हुए कुछ ऋषि आ गए। वे महापुरुष केवल भगवत चर्चा करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते थे। उसी वन में यदुवंश के राजकुमार भी खेलने-कूदने के लिए निकले थे। वे सभी युवक थे ,स्वछन्द व बलवान थे। ऋषियों को देख कर यादव कुमारों के मन में परिहास करने की सूझी।

जाम्बवती-नंदन साम्ब को सबने साड़ी पहनाई, उसके पेट पर कपडा बांध दिया। उन्हें साथ ले कर ऋषियों के पास गए। साम्ब ने घूँघट निकाल कर मुख छुपा रखा था। साथियों ने ऋषियों से बनावटी नम्रता से प्रणाम करके पूछा "यह सुन्दरी गर्भवती है और जानना चाहती है कि उसके गर्भ से क्या उत्प्पन होगा। आप सभी सर्वज्ञ है ,भविष्यदर्शी है आप कुछ बताने की कृपा करें।" अपनी शक्ति का उपहास होते देख सभी मुनिगन क्रुद्ध हो गए। उन्होने कहा "मूर्खों अपने पूरे कुल का नाश करने वाला मूसल उत्पन्न करेगी ये।"

भयभीत राजकुमार घबराकर वहा से लौट गए। साम्ब के पेट पर बन्धा वस्त्र खोला तो उसमे से लोहे का एक मूसल निकला। अब कोई उपाय तो था नहीं, यादव कुमार राजसभा में आये और सारा प्रसंग राजा उग्रसेन को बता दिया। महाराज की आज्ञा से उस मुसल को कूट-कूट कर चूर्ण बना दिया गया और बचे हुए लोहे के टुकड़े को समुद्र में फेंक दिया गया।

मुनियों के श्राप से वह लोहे का चूर्ण घास के रूप में उग गया। समुद्र में फेंके गए टुकड़े को एक मछली ने निगल लिया। वह मछली मछुआरे द्वारा पकड़ ली गई। मछली के पेट से निकले लोहे के उस टुकड़े से बाण की नोक बन गई। वही बाण श्रीकृष्ण के चरण में लगा, और यादव-वीर समुद्र-तट पर परस्पर एक दूसरे से ही युद्ध करने लगे, शस्त्र ख़त्म होने पर घास से ही आघात करने लगे। इस प्रकार एक विचारहीन परिहास के कारण यदुवंश नष्ट हो गया।
- धार्मिक ग्रंथ से प्रस्तुत

Wednesday, July 10, 2013

जल-प्रलय

while going to kedarnath-- INDIA

विशाल पर्वत खंड-खंड हो
बह गए जल प्रलय के साथ,
स्तब्ध रह गयी दुनिया
देख प्रलय का हाल,
प्रकृति मौन रह सहती रही
सदियों से मानव का हर मजाक,
कहीं पेड़ों की अंधाधुंध
कटाई कहीं पर्वतों की छँटाई,
कभी धरती का सीना चीरती सुरंगें,
परिवर्तन कर विकास करने की जिद,
परिवर्तन आया आसान हुई हर राह,
मानव खुद को समझ बैठा भगवान,
पर प्रकृति और न सह सकी ये क्रूर मजाक,
उसकी छटपटाती आत्मा व नयनों से निकली जल-धारा
रौद्र रूप रख बह चली, ले विनाश का रूप,
पल भर में चारों और वीरानगी छा गई,
अपने, अपनों से सदा के लिए बिछुड़ गए,
कुछ राजा थे, रंक हो गए,
लाशों से पट गयी देवभूमि,
बिन बताए आये प्रलय ने कर डाला सर्वनाश,
प्रकृति बिन मांगे ही
सहज भाव से हमें देना चाहती थी प्यार-दुलार,
पर स्वार्थी मानव अपनी हठ में समझ न सका
प्रकृति का निर्मल प्यार-दुलार...

- साधना

Tuesday, July 2, 2013

युक्ति शारीरिक बल से श्रेष्ठ होती है

King Cobra

किसी वन में एक विशाल बरगद का पेड़ था। उसकी घनी शाखाओं पर अनेक पक्षी रहते थे। वहीं एक कौवे का जोड़ा भी रहता था। उसी पेड़ के खोखले तने में एक काला साँप भी रहता था। जब भी मादा कौवा अंडे देती, वह साँप उन्हें खा जाता था। कौवे के अंडे खा जाना उसका स्वभाव बन गया था। एक दिन कौवे का जोड़ा अपने मित्र सियार के पास गया और अपना दुखड़ा सुनाया। सारी बातें सुनकर सियार भी बहुत दुखी हुआ और बोला - "मित्र, चिंता करने से कुछ नहीं होगा। हम उस दुष्ट सर्प से शारीरिक बल से तो नहीं जीत पाएंगे, पर उपाय करने से तुम्हारा शत्रु मारा जाएगा।" कौवे के जोड़े ने कहा- "मित्र जल्दी से उपाय बताओ"। सियार ने कहा "तुम किसी राजा की राजधानी में चले जाओ, वहाँ से किसी धनी व्यक्ति का सोने का हार लाकर उस दुष्ट सर्प के बिल में डाल देना। उस हार को ढूंढते-ढूंढते राज-सेवक आएँगे और इस प्रकार तुम्हारा दुश्मन मारा जाएगा"।

यह सुनकर कौवे का जोड़ा नगर की और उड़ गया। वहां तालाब के किनारे राजकुमारी जल-क्रीड़ा कर रही थी। कौवे ने झपट्टा मार कर सोने का हार उठा लिया और ले जाकर पेड़ के खोखले तने में डाल दिया और खुद दूसरे पेड़ पर जा कर बैठ गया। राज-कर्मचारिओं  ने कौवे को हार खोखले तने में डालते देख लिया था। जब वे वहाँ पहुचें तो उन्हें फ़न उठाये सर्प दिखाई दिया। फिर क्या था उन सभी ने मिल कर सर्प को मार डाला। सियार के बुद्धि-चातुर्य से कौवे का जोड़ा सुखी हो कर आनन्द पूर्वक रहने लगा।

इसीलिये कहा गया है कि "बलवान को युक्ति से ही जीतना चाहिए"।

- पंचतंत्र से प्रस्तुत