Wednesday, December 27, 2017

पल-छिन

पल पल छिन-छिन जीवन गुज़र रहा है,
हौले-हौले जीवन का ये साल भी गुज़र रहा है,
बीते लम्हों को भूल ठंडी-ठंडी हवाओं का दामन थाम,
बादलों के दामन में छुपे 
अनमने से सूरज की धूप के इंतज़ार में ये वक़्त गुज़र रहा है। 
अनमनी-सी धूप नए-नए प्रवासी परिंदो का इंतज़ार,
पेड़ो से झरते पुराने पत्तों की सरसरहाट
 को सुन ये वक़्त गुज़र रहा है।  
शाम को गहराते अंधेरों में कुहरे की चादर में लिपट 
सन्नाटों से भरी रातों के साये में ये पल गुज़र रहा है।  
आएगी जीवन में फिर एक खुशनुमा सुबह 
सूरज की लालिमा के साथ यही सोचकर 
ये सोचकर ये जीवन गुज़र रहा है।   
--साधना 'सहज'