Monday, December 21, 2015

काली रातें...

स्याह घनी काली रातों में, 
सुनसान गलियों में,
सन्नाटों को चीरती भयावह आवाज़े,
शायद किसी निर्भया की हो,
पर क्या फर्क पड़ता है?
दिन के उजालो में न्याय मिलता है अपराधी को, 
जेल की सलाखें नहीं
खुले-आम घूमने की आज़ादी
शायद अब स्याह काली रातों की जरूरत ही न हो, 
बेख़ौफ़ घूमते मिल जाये दरिंदे दिन के उजालो में, 
हर गली हर मोड़ पर... 
- साधना 

Friday, December 4, 2015

मेरी मासी...

मासी तुम माँ सी हो,
तुम्हारे निर्मल प्यार में बसता है
हम सबका जीवन,
तुम्हारी उठती-झुकती पलकों में है
जीवन का साँझ-सवेरा,
तुम्हारी ममतामयी मीठी वाणी में है बसी,
शाम को मस्जिद से उठती अजान,
सुबह को पूजा से उठते मंत्रो के स्वर,
जीवन के सारे रिश्ते तुमसे ही,
तुम्ही हो हम सबकी आशा, उम्मीद और विश्वा,
तुमसे मिलकर जीवन में आया नया आत्मविश्वास,
तुम्हारी इबादतों से ही है हम सबका जीवन गुलज़ार...
 - साधना