Wednesday, December 17, 2014

जगत जननी


हे जगत जननी तुम शक्ति हो
शिव के साथ मिल तुम और भी शक्तिशाली हो जाती हो
तुम्हारे हज़ारों हाथ हैं, तुमसे विनम्र विनती है
मुझे मेरे दो हाथों के अतिरिक्त और दो हाथ प्रदान कर दो
क्योंकि, मैं लगन से काम करने के बाद भी किसी भी कार्य में पूर्णता प्राप्त न कर सकी
थक चुकी हूँ, चारों और असंतुष्ट चेहरे नज़र आते हैं
मैं संतुष्ट देखना चाहती हूँ हर चेहरे को
मैं सभी निःशक्त-जनो, जरुरतमंदो की मदद करना चाहती हूँ
और पूर्णता को प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बना
समर्पित करना चाहती हूँ, तुम्हारे चरणों में...

 - साधना

Tuesday, December 9, 2014

उम्र का एहसास...












बेहद सर्द दिनों में एक बूढ़ा बैठ कर दालान में बीड़ी का धुँआ उड़ाते हुए
उदास मन से देखता था कभी इधर -कभी उधर
वह कर रहा था, बादलों से सूरज के निकलने का इंतजार
सूरज निकला पर पहुँच चुका था धीरे -धीरे पश्चिम की ओर
गुनगुनी धूप के मखमली एहसास को पाकर
मन में कुछ गर्मी का अहसास हुआ
पर ढलते हुए सूरज को देख
मन में अपनी ढलती हुई उम्र का भी अहसास हुआ और
वह असहाय सा तकता हुआ रह गया
सिर्फ बीड़ी से उठता धुँआ....
- साधना 

Tuesday, December 2, 2014

जिंदगी...














सोचा न था जिंदगी इतनी उलझनों से भरी होगी
हर कदम पर मुसीबतें होंगी 
अपनों से इतने गम मिलेगें कि दुश्मनों की जरुरत ही न होगी
जिंदगी का हर लम्हा डर के साए से होकर गुजरता है,
न जाने किस मोड़ पर जिंदगी डगमगा जाये
और कोई अपना दूर तक नज़र न आये
दर्द के सायों में गुम हो ये जिंदगी,
ऐसे ही एक दिन हमेशा के लिए गुजर जाए...
- साधना