Friday, December 27, 2013

ओस की बूँदें...



कुहरे से भरी धुंधली सुबह में,
जब रक्तिम आभा से भरा सूरज निकलता,
तब ओस की नन्ही बूँदें पत्तों के किनारों पर,
मोतियों-सी सज जाती।
जगमगाती सुंदर मोतियों की लड़ी की तरह।
हवा के थपेड़ों को सहकर इधर-उधर,
लुढ़क कर अपने अस्तित्व को बचाती।
किसी उदास मन को जीवन का रहस्य समझाती
कि जब तक हमारा अस्तित्व है,
हमें जीवन की परेशानी को भूलकर ख़ुशी-ख़ुशी जीना होगा।

- साधना

Thursday, December 12, 2013

संगठन में शक्ति होती है

Elephants by the roadside

किसी वन में एक वृक्ष पर गौरैया का एक जोड़ा रहता था। कुछ समय बीतने पर गौरैया ने अंडे दिए, अभी अण्डों से बच्चे निकल भी नहीं पाये थे कि एक मतवाले हाथी ने आकर उस डाली को ही तोड़ डाला जिस पर घोंसला बना था।

गौरैयाका जोड़ा तो किस्मत से बच गया ,पर सारे अंडें फूट गए। गौरैया का जोड़ा दुखी हो रोने लगा, तब पास बैठे कठफोडवा ने उनके दुःख का कारण पूछा। गौरैया ने घौसला हाथी द्वारा तोड़े जाने की बात बताई। कठफोड़वा ने सांत्वना देते हुए कहा "यूँ तो हम हाथी के सामने छोटे से है परन्तु संगठन में शक्ति होती है हम मिलकर हाथी से बदला ले सकते है।"

तब कठफोडवा अपनी मित्र मक्खी व मेंढक के पास गया व हाथी को पराजित करने कि योजना बनाई। योजनानुसार जब हाथी वहाँ से गुजरा तो मक्खी हाथी के कान के पास गुनगुनाने लगी ,हाथी ने मस्ती में आकर अपनी आँखे बंद कर ली। कठफोडवे ने अपनी तेज चोंच से हाथी कि आँखे फोड़ डाली,अँधा हाथी प्यास से व्याकुल हो उठा। तभी मेंढक एक बड़े से गड्ढें के पास जाकर टर्र -टर्र कि आवाज करने लगा। हाथी पानी के भरम में गढ्ढे में जा गिरा और तड़प -तड़प कर मर गया।

अतः नीति बताती है कि समूह में शक्ति होती है। संगठन और समूह -भावना से कार्य करने से बड़े से बड़ा काम सम्भव हो जाता है, और संतोष भी प्राप्त होता है।

- नीतिकथा से प्रस्तुत

टिप्पणी: वर्तमान समय में हमारे परिवार और हमारे राष्ट्र को भी संगठन व समूह-भावना की आवश्यकता है ताकि हम अपने विरोधियों का सामना सशक्त होकर कर सकें और अपने राष्ट्र को मजबूत बना सके।

Monday, December 2, 2013

पुण्य सलिला नर्मदा

Fast flowing river
अमरकंटक के घने जंगलों से,
पर्वतों से निकलते समय तक,
हे पुण्य सलिले नर्मदा,
तुम कितनी शांत और सौम्य होती हो,
धीरे-धीरे लहराती बलखाती,
चट्टानों से टकरा टकरा कर,
अपने पथ को विशाल बनाकर अपने चौड़े पाटों का विस्तार कर,
जन-जीवन की प्यास बुझा निर्झर हो झर-झर आगे बहती जाती,
कहीं धुँआधार का रूप धर लेती,
तो कभी सुन्दर मनोहारी घाटों की अनुपम शोभा बढ़ाती
तुम्हारी उपजाऊ कोख में न जाने कितने जीवन पलते,
जब घुमड़ घुमड़ काले बादल आते,
घनघोर घटाएँ जल बरसातीं,
तब विकराल रूप धर तुम न जाने गाँव,
शहर व प्राणियों को लील आगे बढ़ जातीं,
धीरे-धीरे तुम अशांत समुद्र में मिल गुम हो जातीं,
जहाँ तैरते अनगिनत जहाज...
                                                                           -- साधना 

Thursday, November 21, 2013

मौसम

White Butterfly
हवाएं रुख बदल रहीं हैं,
कभी गर्म-गर्म तो कभी सर्द-सर्द
मौसम का मिजाज़ आशिक़ाना है,
मौसम को आशिक़ाना होते देख
प्रकृति भी नव-यौवना कि तरह इठला कर खिल उठी है
नित नई खुशबुओं व रंगों की छटा बिखेर  रही,
कहीं रातरानी की तेज़ महक,
कहीं सुर्ख लाल गुलाबों की कलियाँ चटक रहीं हैं।
भौरों की गुंजन और तितलियों की रंगिनियों से
भर गया मौसम
गुलदाऊदी अनेक रंगों में अपनी छटा बिखेर रही है।
नन्हें नन्हें मौसमी फूलों ने
रंग बिरंगे रंगों से भर दिया है प्रकृति का आँचल,
धीरे धीरे प्रवासी पक्षी भी लौटने लगे हैं
अपने घरौंदों में नए नीड़ का निर्माण कर
नव-जीवन का राग सुनाने......
- साधना

Sunday, November 10, 2013

संगीत का जन्म

Music


प्रकृति के शांत और निशब्द हो जाने पर,
अंधकार के बाद प्रभात काल में सूरज की सुनहरी किरणों को देख,
पक्षियों के मधुर कलरव से मिल शायद संगीत का जन्म हुआ होगा,
लहरों के किनारों से टकराने से पैदा हुई आवाजों से,
या कहीं शंख की ध्वनि को सुन किसी पवित्र मन में संगीत का जन्म हुआ होगा,
माँ तुम्हारी ममता से भरी लोरी से ही संगीत का जन्म हुआ होगा,
माँ तुम्हारे निस्वार्थ प्रेम से भरे मुख को देख,
जब मैं जोर से खिलखिलाकर हँसा था और तुम ख़ुशी से झूम उठी थीं,
शायद उसी वक्त संगीत का जन्म हुआ होगा...
-साधना 

Saturday, November 2, 2013

यादों की दीपावली

Vandalized Vintage Print, " Childhood Memories" Mike Mozart painted more "Details" into this boring and bizarre vintage Print


          वर्षा ऋतु के समापन के बाद आता है जगमागते दीपों का त्यौहार दीपावली,
परस्पर मेल मिलाप का,मिलकर खुशियाँ मनाने का।पर मुझे लगता है कि दीपावली इन सब ख़ुशियों के साथ ही, पुरानी यादों को ताज़ा करने का।
          बारिश के बाद जब हम पुरानी अलमारी में रखे कपड़ों की नमी दूर करने 
के लिए धूप में डालते हैं, तब बच्चे हों या बड़े सभी थोड़ी थोड़ी देर में कहते नज़र आते हैं, कि अरे ये तो मेरा वो वाला शर्ट हैं जो मेरी नानी या दादी ने मुझे मेरे जन्म दिन पर दिया था। ये जींस पापा मेरे लिए मुम्बई से लाये थे, ये फ्रॉक मेरे बचपन की है जो मामाजी ने दिलाई थी। ऐसी बातें पूरे समय होती रहतीं हैं।
          विशेषकर जो माँ होती है, उनकी यादों का खज़ाना तो खुल जाता है। जब बेटा बेटी के छोटे-छोटे स्वेटर, मोज़े, पायजामे आदि कपड़े हाथों में आते हैं तो तब आँखों के सामने वे सारे दृश्य चलचित्र की भांति घूमने लगते हैं जब उन्होंने अपने ममता भरे हाथों से उन्हें बनाया था।
          इस कपड़ों को गठरी से निकाल कर धूप में सुखाना और फिर यत्न से वापस रखना एक अदभुत अनुभूति होती है, इसी समय सबकी बातें भी सुननी पड़ती हैं कि क्या जरुरत हैं इन पुरानी चीजों को संभाल कर रखने की, किसी गरीब को दे दो । पर पुरानी यादों को जीवित रखने के लिए , सबकी बातों को अनसुना कर माँ फिर उन कपड़ों और वस्तुओं को सहेज कर वापस अलमारी रख देती है, अपनी उन यादों की धरोहरों को, फिर से अगले वर्ष धूप में सुखाने को....... 

                                                                                       साधना 

Thursday, October 24, 2013

सुनहरे स्वप्न

Golden Haze
नींद नहीं आती रातों में,
मन खोया खोया सा रहता है, 
सुनहरे स्वप्न आना चाहते हैं,
झील सी गहरी आँखों में,
चुपके से घर में दरवाजे के पीछे छुप जाते हैं,
कभी झरोखों से झाँकते नज़र आते हैं,
कभी घर आँगन में घूमते फिरते नज़र आते हैं,
कभी मुक्त गगन उड़ते हुये,
तो कभी नदिया के जल में लहराते उतराते हैं,
मैं चाहती हूँ शांत रातों में सोना,
एक लम्बी गहरी नींद में,
ताकि देख सकूं सुन्दर सुखद स्वप्न....
-साधना 

Monday, October 14, 2013

कलियुगी दशहरा

Ravan


रावण कब मरता है,वो तो जीवन के हर पहलू में जीवित रहता है,
आज साँझ ढलने के बाद रावण फिर जलेगा, 
सांसों में धुआं व आँखों में राख गिरेगी और चारों ओर धुआं ही धुआं होगा,
कागज का पुतला जला और रंगीन आतिशबाजी का सब आनंद ले,
सब एक दूसरे को मुस्कराते हुए,
बुराई पर अच्छाई की विजय की बधाई देंगे ,
अधर्म पर धर्म की विजय, 
अन्याय पर न्याय की जय-जयकार की बातें होंगी । 
सहसा कहीं से किसी कुटिल मन में फिर पैदा होगा,
एक रावण जो काम क्रोध अहंकार दंभ से भरा होगा,
जो हर लेगा किसी राम की परिणीता स्त्री, किसी की दुलारी बेटी,
रावण को अगर सदा के लिए मारना है तो,
मारना होगा समाज में व्याप्त सभी बुराइयों को,
और साथ ही निर्माण करना होगा ऐसे वातावरण का, कानून का,
कि दुराचारी दुष्कर्म करने से पहले,
अपनी सजा के बारे में सोच कर ही काँप जाये,
नहीं तो इसी तरह पैदा होते रहेंगे रावण,
जिन्हें मारने के लिए इस कलियुग में न जाने कब राम जन्म लेंगे 

                                                                   -- साधना 

Thursday, October 10, 2013

माँ भ्रामरी देवी की कथा


पूर्व समय की बात है, अरुण नाम का एक दैत्य था। वह बड़ा नीच था, उसके मन में देवताओं को जीतने की इच्छा उत्पन्न हो गई। उसने कठोर तप किया, तब उसके शरीर से प्रचंड अग्नि निकली, जिससे सभी प्राणियों के मन में आतंक छा गया। उसकी  कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे वर मांगने को कहा। अरुण ने जब आँखे खोली, तो सामने ब्रह्माजी को पाया। उसने ब्रह्माजी से वर माँगा ''मैं कभी मरुँ नहीं '' ब्रह्माजी  ने समझाया जन्म लेने वाले का मरना निश्चित है, यही जीवन का सिद्धांत है। तुम कोई दूसरा वर मांग लो।

तब अरुण ने कहा -''प्रभो अच्छी बात है, फिर आप मुझे ऐसा वरदान दीजिये कि मैं न युद्ध में मरुँ, न किसी अस्त्र -शस्त्र से, न स्त्री-पुरुष से, न ही दो पैर, चार पैर वाले प्राणी मुझे मार सके और मुझे ऐसा बल दीजिये कि मैं समस्त देवताओं को जीत सकूँ। तब ब्रह्माजी तथास्तु कह कर ब्रह्मलोक को चले गए। दैत्य अरुण ने अपने बल से सभी लोकों पर विजय प्राप्त की और सभी को सताने लगा। समस्त देवता अरुण से व्यथित होकर उसे परास्त करने का विचार करने लगे। तभी आकाशवाणी हुई कि तुम सभी भगवती की आराधना करो, वे ही तुम्हारा कार्य सिद्ध करेंगी, साथ ही दैत्य अरुण को गायत्री जप से विरत करना होगा।

तब ब्रहस्पति जी ने मायाबीज का जप करके तपस्या पूर्ण की, जिससे उन्हें तेज और शक्ति पुनः प्राप्त हुई। तत्पश्चात वे दैत्य अरुण के पास जाकर बोले - जिन देवी की तुम उपासना करते हो, मैं भी उन्ही की उपासना करता हूँ। बल के अभिमान और देव माया से मोहित होकर अरुण कहने लगा - आज से मैं गायत्री की उपासना नहीं करूँगा और उसने तपस्या करना छोड़ दिया। गायत्री जप का त्याग करते ही अरुण निस्तेज हो गया। कुछ समय बीतने के बाद जगत का कल्याण करने वाली माँ भगवती जगदम्बा प्रगट हुई। उनके श्रीविग्रह से करोड़ों सूर्यों का प्रकाश फ़ैल रहा था, उनकी मुठ्ठी में अद्भुत भ्रमर भरे हुए थे। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की। देवी ने उन भ्रमरों को चारों और फैला दिया, उन सभी भ्रमरों ने जाकर राक्षसों की छाती छेद डाली। इस तरह ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई कि न युद्ध हुआ, न किसी की परस्पर बातचीत हुई और शक्तिशाली दानव नष्ट हो गए। इस प्रकार माँ भ्रामरी देवी का प्रादुर्भाव हुआ।
 
- धार्मिक ग्रंथों से प्रस्तुत

Saturday, October 5, 2013

शक्ति

Hat tala para Durga thakur

हे देवी माँ , तुम महाशक्ति हो,
इस विश्व की जननी और पालनहार भी तुम ही हो,
यह संसार एक रंगमंच है तुम उसकी रचयिता,
तुम्हारी मधुर मुस्कान में सम्पूर्ण विश्व डूब जाता है,
क्योंकि तुम सबकी आँखों पर मोह की पट्टी बाँध कर,
सबको कठपुतलियों सा कुशल नट की भाँति नचाती हो,
आत्मा परमात्मा को भूल मनुष्य इच्छाओं के समुद्र में डूब जाता है,
गर्त में डूबता जाता है और कभी सुखी नहीं हो पाता,
दुखी होकर भी सुखी होने का अभिनय करता है,
पर फिर भी जीवन का सबसे बड़ा सच तो यही है,
कि खुश हैं सिर्फ ये धरती, आकाश,
नदिया, गहरा समुन्दर और तपता सूरज,
क्योंकि ये सब ही सत्य हैं….
- साधना

Monday, September 30, 2013

टूटे रिश्तों की चुभन

Broken Heart Grunge

मैं उन टूटे रिश्तों की चुभन महसूस कर रही हूँ
जो इस संसार की भागमभाग में टूट कर खो गए हैं
रिश्तों को सुखद व सुवासित बनाना चाहती हूँ,
पर बहुत कठिन सा लगता है, रिश्तों  को आसानी से बदल पाना,
क्योंकि चारो ओर छल कपट से भरी दुनिया नजर आती है
अपने ही अपनों को छलते हैं,
कोशिशो में सफलता का विश्वास ले
हम इन रेगिस्तानो में भटकते है
मन सोचता है एक बार फिर मिलकर
हम तुम कुछ बातें करते
कुछ तुम कहते कुछ हम कहते,
मिल कर दोनों के आंसूओं के सैलाब में
बह जाते सारे गिले-शिकवे
सुबह होने पर रक्तिम आभा लिए
एक नया सूरज बादलों की ओट से
मुस्करा कर निकलता
और हम भूल जाते टूटे रिश्तों की चुभन...
- साधना

Sunday, September 22, 2013

ममता की छांव

Tree hugs!

माँ, तुमने स्वप्निल आँखों से,
अपने नर्म नाज़ुक हाथों से, 
एक छोटा सा बीज रोपा था धरती की गहराई में,
अब स्नेह के जल को पाकर,
वह धीरे-धीरे घुटनों की ऊँचाई तक बड़ा हो,
धीरे-धीरे विशाल आकार लेने लगा है,
जिसके हर पत्ते फूल-फल से,
तुम्हारे हर पल आसपास होने का अहसास होता है,
उसके फूलों में तुम्हारे निर्मल प्यार की खुशबू है,
जो मंद मंद पवन को सुवासित कर चारों ओर महकती है,
फलों में तुम्हारे प्यार की मिठास व निश्छल प्रेम का अहसास है,
जो मुझे भर देता है आत्म विश्वास से,
उसकी घनी छाया में महसूस होता है,
तुम्हारी गोद में सिर रखकर सोने सा सुकून व सभी आत्मीय जनों का आशीर्वाद....
- साधना

Thursday, September 12, 2013

मित्र की पहचान

Wrestling with a trained bear / Lutte avec un ours dressé

दो मित्र थे। एक दिन दोनों भ्रमण के लिए निकले। सँयोगवश उसी समय वहाँ एक भालू आ गया। एक मित्र भालू को देखते ही अत्यन्त भयभीत हो कर, दूसरे मित्र की परवाह किये बिना ही भाग कर निकट के पेड़ पर चढ़ गया। दूसरा मित्र अकेले भालू के साथ लड़ना असम्भव जानकर मुर्दे के समान धरती पर सो गया।

उसने पहले से सुन रखा था कि भालू मरे हुए आदमी को हानि नहीं पहुँचाता है। भालू ने आकर उसके नाक, कान, मुख, आँख, तथा सीने की परीक्षा की और उसे मरा हुआ समझ कर चला गया।

भालू के जाने के बाद पहला मित्र पेड़ से नीचे उतरा। उसने मित्र से जाकर पूछा -भाई ,भालू तुम्हारे कान में क्या कह रहा था। मैंने देखा कि वह बड़ी देर तक तुम्हारे कान से अपना मुख लगाये हुए था। दूसरा मित्र बोला -भालू मुझे यह कह गया कि 
"जो मित्र संकट के समय छोड़ कर भाग जाता है उसके साथ फिर कभी भी मित्रता नहीं रखना चाहिए।"
- नीतिकथा से प्रस्तुत

Saturday, September 7, 2013

अनैतिकता

186 - I'm afraid that someone else will hear me.

मानवता बिक चुकी है,
चारों ओर अराजकता का राज है,
साधू के वेष में शैतानों का बोलबाला है,
इस छल -कपट से भरी दुनिया में,
आस्था-विश्वास जैसे शब्द निरर्थक हो गए हैं,
मन भूल जाना चाहता है ऐसे शब्दों को,
जो अब सिर्फ किताबों में रह गए हैं,
हर तरफ झूठ, अनैतिकता और वहशीपन का बोलबाला है,
मानव इंसानियत खो चुका है, हर तरफ सिसकियों का राज है,
इस आधुनिक समाज का सृजनकर्ता बन,
मानव ने चारों ओर फैला दी है बर्बादी,
जिसमें नई-नई इमारतें,
स्वर्ग से सुन्दर उपवन तो हैं,
पर प्यार, करुणा व दया से भरे हुए इन्सान विलुप्त हो गए हैं,
हर गली चौराहों पर मौजूद है वहशी दरिंदें, जो अपनों को ही लूट-खसोट रहे हैं,
पृथ्वी भी शर्मिंदा हो जल समाधि लेने को उतावली सी है,
ज़रुरत है समर्थ व सक्षम बन अराजकता का संहार करने की…
 - साधना

Wednesday, August 28, 2013

ज़िंदगी

Indian Classical Dance

साँसों की लय पर नाचती ज़िंदगी
एक सुंदर नर्तकी सी नज़र आती
आल्हादित होने पर
झूम-झूम कर, नृत्य कर

घुँघरूओं के मधुर स्वर,
लय व ताल से जीवंत हो उठती
ज़िंदगी, जिसका एक पाँव धरती पे,
तो दूसरा आकाश पर नज़र आता,
घुँघरूओं के मधुर स्वर में,
झर-झर झरते झरनों की आवाज़ सुनाई देती,
नृत्य की भाव-भंगिमाओं में डूबी ज़िंदगी,
लहराती, बलखाती और इठलाती नज़र आती
नृत्यांगना के हर अंदाज़ में
नवजीवन से भरी नज़र आती ज़िंदगी...
- साधना

Tuesday, August 20, 2013

रक्षाबंधन

rakhi

सावन आया, खुशियाँ लाया
कहीं घटा-घनघोर है छाई
कहीं रिमझिम-रिमझिम फुहारों ने
मोतियों की लड़ी बरसाई
हर घर में हैं खुशियाँ छाई
आया रक्षबंधन का त्यौहार
नाजुक रेशमी बंधनों का त्यौहार

प्रेम के नाजुक रिश्तों का त्यौहार
खुश हो बहन दुआ मांगती, थाल सजाती
हर पल मन ही मन मुस्कुराती
भाई देता वचन ये कि
प्यारी बहना तन-मन-धन से
हर पल दूँगा तेरा साथ
आया राखी का त्यौहार
ऐसा पुनीत पर्व है राखी

जिसमें ना है जाति बंधन
पवित्र प्रेम है झरने सा बहता
आया रक्षाबंधन का त्यौहार...
- साधना

Saturday, August 10, 2013

झरना

Nuuanu Stream near Lili'uokalani Park  ≡  Eric Tessmer, Molokai, Hawaii

निश्छल हो बहता झरना,
कल-कल बहता जाता,

कठोर पर्वतों को भेद बहता,
कुछ भेद भरी बातें कहता जाता,
कुछ अनकही बातें सुनता जाता,
जब झूमकर बारिश आती,

झर-झर बहता जाता।
ऊँचें-नीचे अटपटे पथ पर,

जंगल-जंगल बहता जाता।
पशु-पक्षी धरा-अम्बर को जलमय करता जाता
मानव मन को आनन्दित करता जाता।
धीमे-धीमे मधुर-मधुर

अपनी धुन में बहता जाता।
कई छोटी-छोटी धारों के साथ

जा नदिया में समाता।
अंततः नदिया संग सागर में मिल अपनी मंजिल पाता.

- साधना

Sunday, August 4, 2013

चिरकारी की कथा

The Thinker

महर्षि गौतम का एक महान ज्ञानी पुत्र था। उसका नाम था चिरकारी। वह किसी भी कार्य को करने से पहले उस पर देर तक विचार किया करता था। सोचने की आदत के कारण हर काम में देर हो जाती थी, इसलिए लोग उसे आलसी व मंदबुद्धि कहते थे।

एक दिन की बात है, महर्षि गौतम की स्त्री से एक महान अपराध हो गया। जब ऋषि को पता चला तो वे बहुत कुपित हुए और अपने पुत्र को कहा कि ''बेटा, तू अपनी दुष्कर्मा माता का वध कर डाल।" इस प्रकार बिना विचार किय, ऋषि अपने पुत्र को आदेश देकर स्वयं वन को चले गए।

चिरकारी ने बहुत अच्छा कह कर पिता की आज्ञा को स्वीकार कर लिया। पर अपने स्वभाव के अनुसार वह सोचता रहा। उसने सोचा पिता की आज्ञा का पालन करूँ या माता की रक्षा। पिता की आज्ञा का पालन करना पुत्र का परम धर्म है और माता की रक्षा करना भी प्रधान धर्म है। उसे कभी पिता का पक्ष उचित लगता तो कभी माता का पक्ष। चिरकारी इसी उलझन में पड़ा रहा।

उधर वन में जब ऋषि का क्रोध शांत हुआ तो उन्हें अपने अनुचित निर्णय पर बहुत पछतावा हुआ, वे पत्नी की वध की कल्पना कर रो पड़े। मन ही मन पछताने लगे कि ''आज मेरे अविवेक ने महान अनर्थ कर डाला ,मेरी पत्नी तो निर्दोष है। फिर उन्हें अपने पुत्र के स्वभाव का ध्यान आया। वे सोचने लगे यदि मेरे पुत्र ने आज विलम्ब किया होगा तो मैं स्त्री-हत्या के दोष से बच जाउँगा। जब वे आश्रम पहुंचे तो पुत्र को खड़ा पाया, चिरकारी ने हथियार फेंक कर पिता के चरणों को पकड़ लिया और आज्ञा के पूर्ण न कर पाने की क्षमा मांगी। इतने में ऋषि ने अपनी पत्नी को आते देखा। पत्नी को देख गौतम ऋषि की प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं रही।

उन्होने पुत्र को गले से लगा कर कहा "बेटा तुम्हारे स्वभाव के कारण मैं महान अनर्थ से बच  गया।" तब ऋषि ने नीति का उपदेश देते हुए कहा "हर कार्य को बहुत सोच-समझ कर करना चाहिए। चिरकाल तक सोच-समझ कर किया हुआ काम हमेशा अच्छा फल ही देता है।
- नीतिकथा से प्रस्तुत

Tuesday, July 30, 2013

बूढ़ा नीम

Bundi

बारिश की फुहारों से
भीगी धरती में
चारों ओर नए-नए अंकुर फूट रहे हैं।
हरियाली अपना साम्राज्य फैला
बन बैठी है धरती की महारानी
बूढ़ा नीम अंतिम पड़ाव पर सोच रहा है,
कल मैं रहूँ न रहूँ
मुझे काट-पीट कर,
कुछ शाखाओं को जलाया जाएगा,
कुछ से किसी की घर की चौखट बन जाऊंगा,
कहीं किसी बीमार की दवाई बन जाऊंगा,
हर पल किसी के काम ही आऊँगा
फिर भी हर पल अपने नए रूप में,
मैं देख सकूँगा पृथ्वी का नित नया श्रृंगार …
- साधना

Thursday, July 25, 2013

मेरा पागल मन

Psalm 34:18 (Clouded Heart)

मेरा पागल मन जो उड़ा करता है
सुनहरे पंखो पर होकर सवार,
आकाश को छू कर, फिर ज़मी पर भी चलता है
सबसे आगे भीड़ में बार-बार,
आसमान से जमीं तक की ऊँचाइयों को
बार-बार नाप कर बन जाता है इस प्रकृति का राज़दार
सूरज, चाँद, सितारों को हमजोली बना
उनके साथ करता कही अनकही बातें,
कभी हमजोली बन खेलता, कभी झगड़ता, कभी मान भी जाता
चांदनी रातो में सो कर खो जाता सुनहरे सपनो में,
सुबह होने पर सूरज गुदगुदा कर उठाता,
देखने के लिए  फिर से नए स्वपन
और जानने के लिए नए-नए राज़…

 - साधना

Wednesday, July 17, 2013

परिहास का दुष्परिणाम

Brahmasarovar, Kurukshethra

द्वारका के पास वन में घूमते हुए कुछ ऋषि आ गए। वे महापुरुष केवल भगवत चर्चा करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते थे। उसी वन में यदुवंश के राजकुमार भी खेलने-कूदने के लिए निकले थे। वे सभी युवक थे ,स्वछन्द व बलवान थे। ऋषियों को देख कर यादव कुमारों के मन में परिहास करने की सूझी।

जाम्बवती-नंदन साम्ब को सबने साड़ी पहनाई, उसके पेट पर कपडा बांध दिया। उन्हें साथ ले कर ऋषियों के पास गए। साम्ब ने घूँघट निकाल कर मुख छुपा रखा था। साथियों ने ऋषियों से बनावटी नम्रता से प्रणाम करके पूछा "यह सुन्दरी गर्भवती है और जानना चाहती है कि उसके गर्भ से क्या उत्प्पन होगा। आप सभी सर्वज्ञ है ,भविष्यदर्शी है आप कुछ बताने की कृपा करें।" अपनी शक्ति का उपहास होते देख सभी मुनिगन क्रुद्ध हो गए। उन्होने कहा "मूर्खों अपने पूरे कुल का नाश करने वाला मूसल उत्पन्न करेगी ये।"

भयभीत राजकुमार घबराकर वहा से लौट गए। साम्ब के पेट पर बन्धा वस्त्र खोला तो उसमे से लोहे का एक मूसल निकला। अब कोई उपाय तो था नहीं, यादव कुमार राजसभा में आये और सारा प्रसंग राजा उग्रसेन को बता दिया। महाराज की आज्ञा से उस मुसल को कूट-कूट कर चूर्ण बना दिया गया और बचे हुए लोहे के टुकड़े को समुद्र में फेंक दिया गया।

मुनियों के श्राप से वह लोहे का चूर्ण घास के रूप में उग गया। समुद्र में फेंके गए टुकड़े को एक मछली ने निगल लिया। वह मछली मछुआरे द्वारा पकड़ ली गई। मछली के पेट से निकले लोहे के उस टुकड़े से बाण की नोक बन गई। वही बाण श्रीकृष्ण के चरण में लगा, और यादव-वीर समुद्र-तट पर परस्पर एक दूसरे से ही युद्ध करने लगे, शस्त्र ख़त्म होने पर घास से ही आघात करने लगे। इस प्रकार एक विचारहीन परिहास के कारण यदुवंश नष्ट हो गया।
- धार्मिक ग्रंथ से प्रस्तुत

Wednesday, July 10, 2013

जल-प्रलय

while going to kedarnath-- INDIA

विशाल पर्वत खंड-खंड हो
बह गए जल प्रलय के साथ,
स्तब्ध रह गयी दुनिया
देख प्रलय का हाल,
प्रकृति मौन रह सहती रही
सदियों से मानव का हर मजाक,
कहीं पेड़ों की अंधाधुंध
कटाई कहीं पर्वतों की छँटाई,
कभी धरती का सीना चीरती सुरंगें,
परिवर्तन कर विकास करने की जिद,
परिवर्तन आया आसान हुई हर राह,
मानव खुद को समझ बैठा भगवान,
पर प्रकृति और न सह सकी ये क्रूर मजाक,
उसकी छटपटाती आत्मा व नयनों से निकली जल-धारा
रौद्र रूप रख बह चली, ले विनाश का रूप,
पल भर में चारों और वीरानगी छा गई,
अपने, अपनों से सदा के लिए बिछुड़ गए,
कुछ राजा थे, रंक हो गए,
लाशों से पट गयी देवभूमि,
बिन बताए आये प्रलय ने कर डाला सर्वनाश,
प्रकृति बिन मांगे ही
सहज भाव से हमें देना चाहती थी प्यार-दुलार,
पर स्वार्थी मानव अपनी हठ में समझ न सका
प्रकृति का निर्मल प्यार-दुलार...

- साधना

Tuesday, July 2, 2013

युक्ति शारीरिक बल से श्रेष्ठ होती है

King Cobra

किसी वन में एक विशाल बरगद का पेड़ था। उसकी घनी शाखाओं पर अनेक पक्षी रहते थे। वहीं एक कौवे का जोड़ा भी रहता था। उसी पेड़ के खोखले तने में एक काला साँप भी रहता था। जब भी मादा कौवा अंडे देती, वह साँप उन्हें खा जाता था। कौवे के अंडे खा जाना उसका स्वभाव बन गया था। एक दिन कौवे का जोड़ा अपने मित्र सियार के पास गया और अपना दुखड़ा सुनाया। सारी बातें सुनकर सियार भी बहुत दुखी हुआ और बोला - "मित्र, चिंता करने से कुछ नहीं होगा। हम उस दुष्ट सर्प से शारीरिक बल से तो नहीं जीत पाएंगे, पर उपाय करने से तुम्हारा शत्रु मारा जाएगा।" कौवे के जोड़े ने कहा- "मित्र जल्दी से उपाय बताओ"। सियार ने कहा "तुम किसी राजा की राजधानी में चले जाओ, वहाँ से किसी धनी व्यक्ति का सोने का हार लाकर उस दुष्ट सर्प के बिल में डाल देना। उस हार को ढूंढते-ढूंढते राज-सेवक आएँगे और इस प्रकार तुम्हारा दुश्मन मारा जाएगा"।

यह सुनकर कौवे का जोड़ा नगर की और उड़ गया। वहां तालाब के किनारे राजकुमारी जल-क्रीड़ा कर रही थी। कौवे ने झपट्टा मार कर सोने का हार उठा लिया और ले जाकर पेड़ के खोखले तने में डाल दिया और खुद दूसरे पेड़ पर जा कर बैठ गया। राज-कर्मचारिओं  ने कौवे को हार खोखले तने में डालते देख लिया था। जब वे वहाँ पहुचें तो उन्हें फ़न उठाये सर्प दिखाई दिया। फिर क्या था उन सभी ने मिल कर सर्प को मार डाला। सियार के बुद्धि-चातुर्य से कौवे का जोड़ा सुखी हो कर आनन्द पूर्वक रहने लगा।

इसीलिये कहा गया है कि "बलवान को युक्ति से ही जीतना चाहिए"।

- पंचतंत्र से प्रस्तुत 

Friday, June 28, 2013

अपना अनजान शहर

Walking alone.....

मैं बहुत समय बाद अपने शहर पहुंची,
वहां सब अजनबी से लगे कोई मेरा अपना न था
सारे रिश्ते नाते अजनबी से लग रहे थे
रिश्तो में अनमनेपन का अहसास था
जिन्हें मै दिल से प्यार करती थी,
अपना कहती थी,
वो भी अनमने से थे
मात्र औपचारिकता बची थी रिश्तो में,
मुझे अहसास हुआ
यहाँ कोई अपना नहीं था
कदम लौट पड़े अनजान डगर पर
दूर बहुत दूर क्षितिज के उस पार .....
- साधना 

Monday, June 24, 2013

मेरा मन...

krishna

कान्हा,
मेरा मन करुण क्रंदन कर,
दुख भरी आवाज़ से तुम्हें पुकारता है,
मेरे मन की हलचल में,
दुख भरे आँसू है,
तुमने वचन दिया था कि,
जब भी यह संसार दुखों में डूब रहा होगा,
धर्म अधर्म में बदलने लगेगा,
तुम रूप बदलकर लौट आओगे,
इस संसार कि डूबती नैया पार लगाने,
मैं ये भी जानती हूँ, 
दुखों से दूर भागना,
दुख दूर करने का हल नहीं है,
स्वयं सामना करना होगा,
तभी सुख लौटेगा,
फिर भी आंसुओं से डबडबाई,
आँखों से मैं तुम्हारी राह तकती रहती हूँ...   

- साधना  

Wednesday, June 19, 2013

कर्म और जीवन

Keep walking

हमारा जीवन निरंतर गतिशीलता का प्रमाण है। जिसमें हमें सदा आगे ही आगे चलना होता है। हर पल सजगता को अपनाकर प्रगति-पथ पर चलना होता है। जरा भी हिचकिचाहट में कदम पीछे खींचने पर गति थमने लगती है, पर अवचेतन मन सदा सजग रहता है। वह हमारी उसी भूल को जीवन की सीख बना देता है, ताकि हम अगली बार बिना गलती करे अपने हर कार्य को सम्पूर्ण तन्मयता से कर पाएँ। हमारी आकांक्षाएँ न तो बहुत ज्यादा होनी चाहिए और न बहुत कम। आकांक्षाएँ अधिक होने पर पूरी नहीं हो पाएँगी और हम दुखी हो जाएंगे। इसलिए मध्यम मार्ग को अपना कर शांत मन से हमें अपने जीवन-पथ पर आत्मविश्वास के साथ अग्रसर होना चाहिए।
-साधना

Sunday, June 16, 2013

मेरे पापा

daughter & father

पापा! मैं बिलकुल आप जैसी दिखती हूँ।
मैं चलना चाहती हूँ, उन्हीं आदर्शों पर,
उसी पथ पर, जिस पर आप चले थे
मैं चाहती हूँ आपका आशीर्वाद,
और चाहती हूँ,
मुझे सुंदर परी से पंख लग जाएँ
ताकि मैं उड़ सकूँ,
छू पाऊँ पहाड़ों पर जमी बर्फ
और महसूस कर सकूँ उसकी शीतलता का एहसास,
इस मुक्त गगन की ऊँचाइयाँ
और जानना चाहती हूँ
इस प्रकृति का हर राज़
मेरे बढ़ते कदम कभी ना थमने पाएँ
क्योंकि मेरी हर आशा, विश्वास
व मेरे पथ प्रदर्शक सिर्फ आप ही हैं.....
- साधना

Friday, June 14, 2013

पुनर्जन्म

Rebirth

हमारा हर दिन पुनर्जन्म की तरह होता है,
हम रोज एक नया जीवन जीकर रोज मरते हैं
फिर क्यूँ व्यर्थ में हम जीवन की शांति को खोते हैं
जिंदगी प्रेम, नफरत, मिलना, बिछुड़ना, रूठना, मनाना
इन्ही एहसासों से परिपूर्ण है
पता नहीं होता
जिंदगी कब किस राह पर मुड़ जाएगी
कब, कहाँ किस तरह
कोई अपना मिलकर जुदा हो जाएगा
जिंदगी के टेढ़े-मेढ़े कठिन रास्तों पर चलकर
जीवन बिताना है
चलना  ही ज़िंदगी है 
चलते ही जाना है......
- साधना

Sunday, June 9, 2013

कारी बदरिया

B&W Cumulous Cloud


बहुत लंबे इंतज़ार के बाद बादल,
रुई से नर्म हो जल से भरकर आए,
पवन भी लहरा-लहरा कर, 
बल-खाकर इतराने लगी,
जमकर बरसी प्यारी बदली,
नवजीवन का संचार हुआ,
प्यासी तरसती आँखों को भी आराम मिला,
लगा जैसे कई दिनों से,
बिछड़ी सखी आकर मिली,
हर तरफ अपनेपन का एहसास हुआ,
पल भर में गर्मी से मिली थकान दूर हो गयी,
मस्त-मस्त कारी बदरिया ने,
नए-नए सपनों से श्रृंगार किया।

- साधना

Tuesday, June 4, 2013

जीवन का एहसास

rose

जीवन का होना,
एक फूल खिलने जैसा है,
फूल की खुशबू का,
चारों दिशाओं में बिखरना और,
सतरंगी रंगो-सा छा जाना,
जीवन का होना अपने अस्तित्व की पहचान है,
जीवन का होना प्रेम, प्रीति,
अपनत्व का एहसास है,
इस पृथ्वी पर पग-पग अहिंसा, घृणा,
छल-कपट मिलने की संभावना है,
दुख की हजारों पुकारों के बीच,
दुख से मुक्ति मिलना असंभव है,
पर फिर भी जीवन का धरती पर,
होना एक अनोखा एहसास है... 
- साधना

Friday, May 31, 2013

उफ़ गर्मी!!

Shining-Sun-over-Mountain-Landscape__IMG_7468-580x386

जेठ की चटक चमचमाती, 
तेज धूप से सभी निढाल से हो जाते,
जब बादल का कोई छोटा-सा टुकड़ा,
आसमान पर छा जाता,
तो लगता किसी ने झीनी-सी चुनरिया लहरा दी हो,
तपन से बचाने के लिए,
पीली सरसों के खेतों में,
लहराती इठलाती फिरती गर्म हवाएँ,
अपना परचम फैलाती,
चुलबुल सी बुलबुल पेड़ों की घनी टहनियों,
पर अपने मीठे स्वर में,
अपना नया राग गुनगुनाती,
कबूतरों की टोली मैदानों में,
अपनी गुटर गु की धव्नि फैलाती,
सूर्य के अस्त होते ही,
सुवासित मंद-मंद पवन,
अपना स्पर्श करा सबके मन को,
राहत की सांस दिला,
शीतलता का अहसास कराती...
- साधना

Tuesday, May 28, 2013

तृष्णा (लोभ) से अधिक इच्छा नहीं करना चाहिए...

पूर्व काल की बात है, एक मुनि थे। उनके मन में धन की इच्छा जाग उठी। धन जमा करने के लिए वे तरह-तरह के प्रयत्न किया करते परंतु उनका हर प्रयत्न विफल हो जाता।
उनके पास का धन भी खत्म होने लगा था। उन्होनें सोचा जो थोड़ा-सा धन बचा है इससे दो बछड़े खरीद लिए जाए फिर खेती करके खूब धन कमाया जाए। उन्होनें ऐसा ही किया, बछड़े खरीद कर सोचा इन बछड़ो से जुताई का काम ले कर खूब अनाज पैदा कर के बहुत सारा धन कमाऊँगा।
फिर वे बछड़ो को परस्पर जोत कर (साथ में बांधकर) हल चलाने की शिक्षा देने के लिए घर से निकल पड़े। जब गाँव से बाहर निकले तो रास्ते के बीच में एक ऊँट रास्ता घेर कर बैठा था। दोनों बछड़े ऊँट को बीच में कर उसके ऊपर से निकलने लगे, किन्तु ज्यों ही उसकी गर्दन के पास पहुँचें तो ऊँट को बड़ी चुभन मालूम हुई।वह रोष में भरकर हड़बड़ा कर उठ खड़ा हो गया। दोनों बछड़े जो परस्पर बंधे हुए थे ऊँट के दोनों ओर लटक गए। बछड़ों की साँसे रुक गयी और वो मर गए। यह दृश्य मुनि अपनी आँखों के सामने देख रहे थे पर उनके वश में कुछ भी नहीं था।
अतः वे तृष्णा(लोभ) से मुख मोड़कर बोल पड़े- "मनुष्य कितना भी बुद्धिमान क्यूँ न हो पर जो उसके भाग्य में नही है, उसे वो किसी भी प्रयत्न् से प्राप्त नहीं कर सकता, हठपूर्वक किए गए पुरषार्थ से कुछ भी प्राप्त नहीं होता।"
(नीतिकथाओं से प्रस्तुत)
- साधना

Friday, May 24, 2013

प्राचीन इमारतें

Jahaz-Mahal at Mandu Fort













प्राचीन इमारतें खंडहर-सी नज़र आती,
सूरज के निकलते ही सुनहरी आभा वाली,
किरणों का प्रकाश पड़ते ही इमारतें फिर जीवंत हो उठती,
महलों के महराबों झरोखो से आती,
रोशनी व ताजी बयार को महसूस कर लगता,
अभी-अभी महलों के दालानों में राजा का दरबार सजा है,
कहीं से हँसी ठिठोली करती रानियाँ व,
राजकुमारियों की पायल की रुनझुन,
मंद-मंद हँसने खिलखिलाने की आवाज़ महसूस होती,
कहीं सैनिको की आवाजाही तो कहीं,
घोड़ों-हाथियों से सजी सेना का एहसास होता,
कभी ढ़ोल-नगाड़ो की आवाज़ आती,
कहीं घोड़े की टापों की आवाज़ सुनाई देती,
रात की मधुर चाँदनी में एक सुंदर सी,
नर्तकी का आसपास होने का एहसास होता,
घुंघुरुओ की मधुर आवाज व तबले, सारंगी,
शहनाई के स्वर सुनाई देते,
मन इन प्राचीन इमारतों के वैभवपूर्ण इतिहास,
की कल्पनाओं में इसी तरह खो जाता... 
- साधना

Tuesday, May 21, 2013

सोच...

Tiger Girl


एक छोटी-सी बच्ची थी। उसे रोज रात को सपने में शेर दिखाई देता था। धीरे-धीरे बच्ची के मन में डर बैठ गया। वह पूरे समय अनजाने डर से डरती ही रहती थी। उसके माता-पिता उसे एक मनोचिकित्सक के पास ले गए।
मनोचिकित्सक ने बच्ची से कई प्रश्न किए, फिर उसे प्यार से समझाया कि शेर तुम्हें सपने में परेशान करता है। बच्ची ने कहा- नहीं। मनोचिकित्सक ने समझाया कि शेर तुम्हें परेशान करने नहीं बल्कि तुमसे दोस्ती करने व तुम्हारा मनोरंजन करने के लिए तुम्हारे सपनों में आता है। क्या शेर ने तुम्हें कभी भी नुकसान पहुंचाया? बच्ची ने कहा- नहीं। बस एक सकारात्मक सोच ने उस बच्ची के जीवन को खुशियों से भर दिया, उसके मन से डर निकल गया।
हमें भी अपना हर पल सकारात्मक सोच के साथ बिताकर अपने जीवन की नकारात्मक सोच को खत्म कर देना चाहिए ताकि हम अपने जीवन को सरलता से जी सकें। हर दिन हमें एक अच्छी-सी सकारात्मक सोच के साथ दिन की शुरुआत करना चाहिए। 
- साधना

Saturday, May 18, 2013

संध्या (साँझ)

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धीरे-धीरे सूरज ढलने लगा,
शांत झील में कुछ नावें तैर रही थी,
तभी लगा सुंदर-सलोनी सी संध्या कुछ अलसाई सी,
थकी-सी, पहनकर सिंदूरी कुछ मटमैली सी,
चमकीली सी साड़ी उतर गयी शांत झील के शीतल जल में,
मैं भी शीतल जल में डूब अपनी थकान मिटाना चाहती थी,
पर ऐसा न हो सका क्योंकि मैं इस जग की थकान से परेशान थी,
संध्या रात भर डूबी रही शीतल जल में करती रही जल-क्रीड़ा करती रही,
सुबह-सुबह चिड़ियों के कलरव से,
ठंडे-ठंडे जल से अपने नयनों को धोकर लजाती,
बलखाती फिर अपनी सिंदूरी साड़ी की,
अलौकिक छटा को बिखराती झील के जल से निकली संध्या,
उज्ज्वल प्रकाश फैला इस सृष्टि को जगमगाने के लिए... 
- साधना

Thursday, May 16, 2013

द्रौपदी पांडवों की पत्नी क्यों हुई?

Ram and Sita - home altar


देवी भागवत के नवें स्कन्ध के 14वें अध्याय के अनुसार जब सीता-हरण का समय उपस्थित हुआ तो अग्निदेव ने भगवान श्रीराम से प्रार्थना की कि आप सीताजी को मुझमें स्थापित कर छायामयी सीता को अपने साथ रखिए।
फिर समय आने पर मैं सीताजी को आपको लौटा दूंगा। रावण की मृत्यु के पश्चात जब सीताजी कि अग्नि-परीक्षा हो रही थी, उस समय अग्नि-देव ने वास्तविक सीताजी को उपस्थित कर भगवान श्रीराम को सौंप दिया और छायासीता को श्रीराम व अग्निदेव ने पुष्कर क्षेत्र में जाकर तपस्या करने को कहा।
वही छाया सीता अगले जन्म में राजा द्रुपद के यहाँ यज्ञ-वेदी से द्रौपदी के रूप में प्रकट हुई। भगवान शिव की पूजा में तत्पर छाया सीता ने भगवान त्रिलोचन से प्रार्थना की थी कि मुझे पति प्रदान करें।
यही शब्द उनके मुख से पाँच बार निकले। भगवान महादेव परम रसिक है- उन्होनें प्रसन्न हो कर वर दिया कि तुम्हें पाँच पति मिलेंगे। इस तरह द्रोपदी पाँच पांडवों की पत्नी हुई।
- साधना

Monday, May 13, 2013

अक्षय तृतीया

Lord Vishnu

वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया या आखातीज कहते है। अक्षय का शाब्दिक अर्थ होता है जिसका कभी नाश न हो। स्थायी वही रह सकता है जो सर्वदा सत्य हो।
इसी दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। इस तिथि को भगवान बद्रीनाथ के पट भी खुलते है। आज के दिन ही साल भर में एक बार वृन्दावन में श्री बिहारीजी के चरणों के दर्शन होते है।
आखातीज एक सामाजिक पर्व भी है। इस दिन बिना मुहूर्त देखे सभी शुभ कार्य आरंभ किए जा सकते है। आज का दिन हमारे आत्म विश्लेषण करने का दिन है। हमें इस दिन स्वयं का अवलोकन और आत्मविवेचन करना चाहिए। हमें आज के दिन अहंकार, स्वार्थ, काम, क्रोध, लोभ और बुरे विचारों को छोड़कर सकारात्मक चिंतन करना चाहिए जिससे हमें शांति व दिव्य गुण मिल सके। 
इस दिन दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है। इस तिथि पर दही, चावल-दूध से बने व्यंजन, खरबूज, तरबूज और लड्डू का भोग लगाकर दान करने का विधान है। 
आज के दिन ही महात्मा परशुरामजी का जन्म हुआ था। वे भगवान विष्णु के अवतार है। रेणुका पुत्र परशुरामजी ब्राम्ह्ण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे। सहस्त्रार्जुन ने उनके पिताजी जमदग्नि का वध कर दिया था, जिससे क्रोध में आकर परशुरामजी ने पृथ्वी को दुष्ट क्षत्रिय राजाओं से मुक्त किया था। भगवान शिव के दिये हुए अमोघ अस्त्र परशु को धारण करने के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा था। 
- (धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार)

आभार...


मन आभार प्रकट करना चाहता है उन सभी आत्मीय मित्रों का जिनके सहयोग से आज “अनन्या its unique” के 4000+ page views पूरे हुए । आने वाले समय में आप सभी के सहयोग की अपेक्षा के साथ


- आपकी शुभेच्छु

- साधना

Sunday, May 12, 2013

मेरी माँ...

मेरी माँ

माँ तुम्हारा होना इस जीवन की बगिया का,
खुशियों से भरा होने का एहसास है,
तुम्हारे संस्कारों की सुगंध से सारी दिशाएँ महक उठती है,
चारों तरफ एक रंगीन-सा वातावरण हो जाता है,
माँ तुम मेरे हर दुख-सुख को समझती हो,
हम कहाँ गए, कहाँ चले-फिरे तुम्हें हर बात का पता होता है,
हजारों दुखों से घिरने पर भी,
मुझे दुख से मुक्ति का मार्ग दिखलाती हो,
माँ तुम्हारा होना इस प्रकृति के रंगों का,
ख़ुशबुओं का एक सुखद एहसास है। 

- साधना

प्यारी माँ...

Manon et Maman

माँ इस धरती पर मैं खाली हाथ ही आया था,
तुम्हारे ममता भरे आँचल में छुप कर,
मैंने सच्चा प्यार पाया था,
तुमसे महकी मेरे इस जीवन की बगिया,
जीवन के सारे रिश्ते तुमसे हैं,
इस जीवन की खुशी, चिंता, हल्ला-गुल्ला,
तनहाई तुम हो, नदिया, झरने, गहरा समंदर,
सावन-भादों, बसंती बयार तुम ही हो,
जीवन की हर सच्चाई तुम हो, 
तुम से ही है रिश्ते-नाते, मेरे जीवन की तुम्हीं विधाता,
तुमसे ही अस्तित्व है मेरा,
तुम हो मेरी प्यारी माँ... 
- साधना


Saturday, May 11, 2013

काश बचपन फिर लौट आता...

tree swing #2

जेठ की तपती दोपहर में विशाल नीम का वृक्ष स्थिर रहता,
सबको शीतल छाया व पवन देता,
जब भी गर्मी की छुट्टियाँ होती,
सारे बच्चे उस वृक्ष के नीचे जमा हो बतियाते,
नन्ही-नन्ही सारी लड़कियाँ उसकी छाया में खेलती,
कभी मम्मी-पापा की नकल,
तो कभी स्कूल टीचर की नकल कर अपनी दोपहर बिताती,
कभी आइस-क्रीम वाले की, कभी गन्ने के रस वाले की,
राह ताकती नज़र आती,
उन बच्चियों की प्यारी सी बातें, रस्सी कूदना,
नीम की डाली पर रस्सी बांध झूला झूलना,
देख मन फिर से छोटी-सी बच्ची बन जाने को करता,
कभी चिड़ियों की चहचहाहट, गिलहरी का भागना,
कोयल का कुहु-कुहु करना मन को भा जाता,
बस मन में यही विचार आता कि काश बचपन फिर लौट आता... 
- साधना

Monday, May 6, 2013

विनती

Krishna-I

कान्हा,
मैं जानती हूँ कभी किसी दिन मुझे इस संसार से
विदा होना होगा सूर्य अस्त हो रहा होगा,
पंछी अपने घरोंदों में लौट रहे होंगे और,
मैं अंधेरों में डूब जाऊँगी
तुमसे सिर्फ इतनी विनती है कि
संसार से जाने के पहले मैं अपने भाव तुम्हें,
समर्पित कर सकूँ, तुम्हारे दर्शन के लिए,
दीप जला सकूँ और एक पुष्प हार बनाकर,
तुम्हें अर्पित कर सकूँ, ताकि मेरा जीवन,
सफल हो जाएँ...
- साधना

Sunday, May 5, 2013

अधिक तृष्णा(इच्छा) नहीं करनी चाहिए

Jackal

किसी जंगल में एक भील रहता था। वह बड़ा साहसी और वीर था। वह रोजाना जंगली-जंतुओं का शिकार करके अपने परिवार का पेट भरता था। एक दिन उसे जंगल में एक विशाल सूअर दिखाई दिया। सूअर को देख कर भील ने अपने कान तक धनुष खींच कर उस सूअर पर बाण चलाया। बाण की चोट से सूअर तिलमिला उठा और उसने भील पर हमला कर उसके प्राण ले लिए।
इस प्रकार शिकार और शिकारी दोनों की मर्त्यु हो गई। उसी समय एक भूखा-प्यासा सियार वहाँ आया। सूअर और भील दोनों को मरा हुआ देख कर वह मन ही मन बहुत खुश हुआ और सोचने लगा- मेरी किस्मत बहुत अच्छी है जो मुझे इतना अच्छा भोजन मिला।
इस भोजन का मुझे धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिए, जिससे ये बहुत समय तक मेरे काम आ सके। ऐसा सोचकर वह धनुष की डोरी को ही खाने लगा। थोड़ी देर में धनुष की डोरी टूट गई। धनुष टूट कर सियार के मस्तक पर टकराया और सियार के मस्तक को फोड़ कर बाहर निकल गया। अधिक लालच के कारण सियार की पीड़ा-दायक मृत्यु हो गई इसलिए नीति कहती है अधिक लालच नहीं करना चाहिए। 
                                                               - पंचतंत्र की कथा से प्रस्तुत

Wednesday, May 1, 2013

बीत गया बचपन...

Hand-in-hand into the sunset
बचपन में हर पल प्यार मिला, दुलार मिला अपनों का,
फुर्र-फुर्र उड़ते पंछी-सा बीत गया बचपन,
बचपन के जाते ही जीवन कभी-इधर, कभी-उधर डगमगाने लगा,
सीमित होने लगे पल, दुख-सुख लगे घेरने,
रोक-टोक लगने लगी हर पल,
ये करो-ये ना करो की आवाजें आने लगी,
मन बैचेन होने लगा छटपटाने लगा,
फिर कहीं से स्नेह से भरे बोल सुन बैचेनी खत्म हुई,
जीवन नई तरंगों से भर उठा,
मन आभार प्रकट करने लगा उन स्नेह से भरे शब्दों का,
यदि न मिल पाता स्नेहपूर्ण साथ,
तो जीवन नीरस होकर अतृप्त सा रह जाता...
- साधना

Saturday, April 27, 2013

कांक्रीट के जंगल

Mt. Fuji sunset from Tokyo Tower
गाँव शहरों में बदल गए, कट गए विशाल बरगद, पीपल, नीम,
कांक्रीट के जंगलों को देख मन बैचेन हो जाता,
बैचेनी से पाँव थम जाते, याद आती खेत खलिहानों की और वृक्षों की,
इन्हीं विशाल वृक्षों की छाया में बीता बचपन,
पितरों के आशीर्वाद सा लगता था वृक्षों का साया,
याद आती है नदी के स्वच्छ जल में तैरती स्वप्नों की नाव,
अमराई में आम, इमली से लदे वृक्षों से चुराना अमिया, इमली,
खरबूजों की बाड़ी से खरबूजे चुराकर खाना,
नदी में दूर तक तैर कर जाना, पर हम बेबस है कांक्रीट के,
घने जंगलों ने छिन लिया है हमसे प्रकृति का हर पलछिन... 
- साधना 

Wednesday, April 24, 2013

मन की छटपटाहट...

Heart Shaped Flowers
मन कभी हँसता, कभी रोता, कभी गाने को करता, 
इस मन की गहराई में कुछ जरूर ऐसा है जो ये हर पल,
भटकता रहता दिखावे के लिए हँस -हँस कर सबसे बातें करता, 
पर अन्तर्मन से एक थकी हुई सी सांस लेता,
कभी बाज के पंजो में फंसी हुई चिड़िया-सा छटपटाता,
कभी चिंता और दुख की आँधी में फंस जाता, 
मन की इस छटपटाहट को दूर करने के लिए,
जब एक आशा की धूमिल-सी किरण नज़र आती,
तब मन सारे दर्द भूल जाता,
मन की बगिया में हजारों रंग-बिरंगे फूल खिल जाते,
मन भोरों की गुनगुनाहट से भर जाता,
फिर अपनी निराशा को दूर करने के लिए,
एक नयी फूलों की बगिया सजाता...
- साधना 

Sunday, April 21, 2013

जीवन-मृत्यु

Flying bird
जीवन -मृत्यु पंछी के दोनों पंखो के समान है 
जीवन के आते ही मृत्यु का दिन निश्चित हो जाता है 
जीवन में आते ही मिलता है प्यार-दुलार,
आशा-निराशा, कभी खुशी कभी गम,
कहीं माता -पिता का प्यार कभी भाई-बहन का स्नेह, 
कहीं पति-पत्नी का पवित्र रिश्ता, 
लेकिन एक दिन अचानक पंछी का
दूसरा पंख फड़फड़ाने लगता,
और जीवन-मृत्यु में बदल जाती,
सारे बंधनों से आत्मा मुक्त हो जाती,
और हो जाती अनंत में विलीन,
पीछे रह जाती है सिर्फ यादें... 
- साधना

Friday, April 19, 2013

श्री रामनवमी

Shree Ram Darbar (Lord Rama, Lakshman, Sita & Hanuman)

आज रामनवमी का पर्व है। आप सभी को इस अवसर पर बहुत-२ शुभकामनाएं। इस पर्व के महत्व को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के उद्देश्य से मैं यह लेख लिख रही हूँ। आशा है यह  लेख आपको पसंद आएगा। अपनी टिप्पणियों (comments) द्वारा अपनी सोच मुझ तक पहुंचाइएगा। 

श्री रामनवमी सारे संसार के लिए सौभाग्य का दिन है क्योंकि इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने रावण के वध, दानवों के विनाश और सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए उन्होने धरती पर जन्म लिया था। 

श्रीराम के समान आदर्श पुरुष, पुत्र, शिष्य, पति, वीर, दयालु, सत्यवादी,  दृढ़ प्रतिज्ञ और संयमी जगत के इतिहास में कोई नहीं हुआ। साक्षात परम पुरुष परमात्मा होने पर भी श्रीराम ने सभी को सत्य की राह दिखलाने के लिए आदर्श लीलाएँ की, जिन्हें हम आसानी से अपने जीवन में अपना सकते है। सज्जनों की रक्षा के लिए स्वयं भगवान श्री हरि राम के रूप में अवतीर्ण हुए। 

श्री राम सर्वात्मा है, उनके जीवन का मंत्र था- "सभी को साथ लेकर चलने में ही सच्चा सुख है।" रामनवमी का पर्व हमें संदेश देता है 'अपने को शुद्ध करो ज्ञान की सीमा का विस्तार करो, सद्भाव, समभाव और सहभाव से अपने जीवन को सफल और सार्थक बनाओ।' राम भक्ति में डूबकर राम बन जाओ। स्वयं आनंदित रहकर दूसरों को आनंदित करना ही राम का रामत्व है। 
- साधना

Thursday, April 18, 2013

सर्प-भय मुक्ति मंत्र

Snake Charmers

मैं इस पोस्ट में सर्प-भय से मुक्ति के लिए प्राचीन मंत्र को धर्म ग्रंथ के अनुसार आप सभी तक पहुँचा रही हूँ। ये सभी के लिए ज़रूरी है। 
इस मंत्र के नित्य प्रति जाप करने से सर्प या नागों के भय से मुक्ति मिलती हैं और यह मंत्र विष-भय से हमारी रक्षा करता है।
मंत्र इस प्रकार है: 
जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी। 
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा॥
जरत्कारूप्रियाआस्तीकमाता विषहरेति च।
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता॥
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत।
तस्य नागभयम् नास्ति तस्य वंशोभ्द्वस्य च॥

अगर आप सभी को यह जानकारी पसंद आए तो जरूर शेयर करें और सभी तक पहुँचाए। 
धन्यवाद। 
- साधना

Monday, April 15, 2013

तुम्हारी आँखें...

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तुम्हारी आँखें कुछ कहती है, आँखों में प्यार और
विश्वास छुपा है, और कुछ सतरंगी सपने,
मेरा दिल चाहता है तुम्हारी हर तमन्ना पूरी हो,
तुम्हारी भीगी सी नम आँखों से बहने वाले
आँसू में पोंछना चाहती हूँ,
तुम्हारे कहे-अनकहे हर स्वप्न को,
जो तुम्हारी आँखों में तैरते है,
इंद्रधनुष बन आँखों में उतरते है, उन्हे पूरा करना चाहती हूँ,
तुम्हारा विश्वास जीत मैं तुम्हें अपना बनाना चाहती हूँ,
ताकि जीवन के सुनहरे पथ में कोई बाधा न आने पाये...
- साधना