उसमे एक प्यारा सा चिड़ियों का जोड़ा है
दोनों चिड़िया दिन भर फुदकती, झूलती, चहचहाती,
अच्छा सा दाना-पानी खाती पीती और मस्ती में डूब जाती,
पिंजरे में अपने पंखों को फड़फड़ाती,
मुक्त होने की चाह में इधर-उधर पिंजरे से टकराती,
मैंने उन्हे बहुत समझाया, बाहर की दुनिया बहुत निर्मम है,
वहाँ न दाना है न पानी, चारों तरफ दुश्मन ही दुश्मन व परेशानियाँ है,
पर जब भी मौका मिलता, मुक्त होने की चाह में,
पिंजरा खुलते ही फुर्र हो जाती...
मुक्त गगन में अपना अस्तित्व बनाने की चाह में उड़ जाती...
- साधना
वाह!! क्या लिखा है, एकदम शानदार...
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