भोर के सूरज की लालिमा से चुरा कर लाल मोहक रंग
एक स्त्री भर लेती अपनी माँग में
और भर जाती एक नयी उमंग उत्साह और स्फूर्ति से
और भर जाती एक नयी उमंग उत्साह और स्फूर्ति से
हर दिन माथे पर बड़ी सी बिंदी,
हाथों में रंग-बिरंगी खनखनाती चूड़ियाँ,
हाथों में रंग-बिरंगी खनखनाती चूड़ियाँ,
गले में मंगलसूत्र ,पैरों में रुनझुन करती पायल-बिछिया
संपूर्ण श्रृंगार में डूब भूल जाती सारे दुःख-दर्द
पूर्ण रूप से परिवार के लिए समर्पित होने के बाद भी
अधिकतर उपेक्षा, अपमान का शिकार होती स्त्रियाँ
फिर भी, सारे गिले-शिकवे भूल
हर सुबह सूरज की लालिमा से चुरा कर लाल रंग
नयी आशा का दामन थाम
माँग भर लेती स्त्रियाँ...
- साधना
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