शाम होते ही नन्हे-नन्हे बच्चे सड़को पर,
दौड़ाते रंगीन साइकिलें,
वहीं सड़क किनारे मटमैले से कपड़े पहनकर,
मज़दूर के बच्चे निहारते
उन रंगबिरंगी साइकिलों को,
कभी दौड़ते इस तरफ तो कभी उस तरफ,
नन्हे हाथों से ताली बजा-बजाकर,
निष्कपट मन से खूब खुश होते,
उनकी अदा से झलकता उनका भोला बचपन,
वे भी चाहते करना सवारी उस नन्ही साइकिल पर,
पर मन मसोस कर देखते रहते,
तब उनकी ममतामयी माँ छुपाकर संचय किए धन से
लाकर देती किसी भी तरह पुरानी नन्ही साइकिल और
खुश हो झूम उठते नन्हे-नन्हे बच्चे...
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