एक काली, चमकीली छोटी सी, चुनमुन चिड़िया
कभी पत्तों पर गिरी पानी की बूंदों पर फिसलती
कभी फूलों में चोंच डाल उनका रस पीती
फिर हौले-हौले पारिजात के पत्तों को ध्यान से देखती
बड़ी मेहनत से कहीं से धागे, नारियल के रेशे लेकर आती
धीरे-धीरे बुनती अपने नन्हें बच्चों के लिए घरौंदा
रुई के नर्म बिछौनों पर देती अंडे
और इंतज़ार करती नाज़ुक परों से ढंके अपने बच्चों का
फिर उनके लिए चुन-चुन के लाती दाना-पानी
उन्हे हर विषम परिस्थिति में उड़ना सिखाती
इतनी छोटी सी होने पर भी
अपना माँ होने का हर कर्तव्य निभाती
इस निर्दयी संसार में रहकर उन्हे मुक्त गगन में
निर्भय होकर जीना सिखाती....
- साधना
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