Sunday, March 16, 2014

रंगों का त्यौहार - होली



















बसंतपंचमी के आते ही प्रकृति में एक नवीन परिवर्तन आने लगता है। दिन बड़े होने लगते हैं, जाड़ा कम होने लगता है और पतझड़ शुरू हो जाता है। माघ पूर्णिमा को होली का डांडा गाड़ा जाता है। आम कि मंजरियों पर भौरें मँडराने लगते हैं, वृक्षों में नई  कोपलें फूटने लगती है, और चारों ओर एक नवीनता का अहसास होने लगता है। ऐसे समय पर मनाया जाता है नई उमंग के साथ, रंगों का त्यौहार होली।

होली एक सामाजिक एवं धार्मिक त्यौहार के साथ-साथ रंगों का भी त्यौहार है। इस अवसर पर लकड़ी और कंडों का ढेर लगा कर होलिकापूजन किया जाता है फिर उसे जलाया जाता है। इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ भी कहा जाता है। खेत से नए अनाज को लाकर होली कि आग में भूनकर प्रसाद के रूप में दिया जाता है, इस अन्न को होला कहते है।

हिरण्यकश्यपु की बहिन होलिका को वरदान मिला था कि उस पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं होगा। अतः वह विष्णुभक्त प्रह्लाद का अंत करने के विचार से उन्हें गोद में लेकर अग्नि के बीच में बैठ गई पर भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका का अंत हुआ। तभी से त्यौहार मनाने की प्रथा चल पड़ी।

होली एक आनंद और उल्लास का पर्व है। यह सम्मिलन, मित्रता व एकता का पर्व है। इस दिन सभी द्वेषभाव भूलकर सबसे प्रेम और भाईचारे से मिलते है। एकता ,सद्भावना एवं भाईचारा बनाये रखना इस त्यौहार का मूल उद्देश्य एवं संदेश है।

इस दिन अबीर -गुलाल लगा कर सभी एक दूसरे से गले मिलते है। कुछ लोग कीचड़ ,गोबर, मिटटी का प्रयोग कर के एक दूसरे के ह्रदय को चोट पहुचातें है। अतः इन सब का त्याग करना चाहिए। इस दिन आम कि मंजरी और चन्दन को मिला कर खाने का माहात्म्य है। जो लोग फागुन कि पूर्णिमा को हिंडोले में झूलते हुए भगवान के दर्शन करते है ,वे बैकुंठलोक में निवास करते है। अतः हम सभी को पूरे उल्लास व उमंग के साथ इस रंगों से भरे त्यौहार को मनाना चाहिए।
- साधना

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