जीवन के दोहरे मापदंडों के कारण
नारी अशक्त है
पुरुष और नारी के लिए
समाज ने अलग-अलग नियम बना
पुरुष को दिया खुला आकाश
और नारी को घुटन भरा जीवन
पुरुष को हर अपराध माफ़
और नारी को नियम,नीति व संस्कारों का बंधन
इसीलिए पुरुष अपनी पराकाष्ठाओं को पार कर जाता
नारी लोकलाज के डर से
सिमट कर कशमकश में डूब जाती
इन दोहरे मापदंडों को
भूल एक नया मापदंड अपनाना होगा
ताकि सदियों से चले आ रहे
दोहरे मापदंडों की उलझनों से निकल
हर नारी को मान -सम्मान का जीवन मिल सके
- साधना
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