प्रवासी पक्षी ,रुको अभी न जाओ छोड़कर क्योंकि मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ
जानना चाहती एक राज कि तुम बिना थके कैसे तय करते हो इतने लम्बे फासले
मैं तुम्हें दिखाना चाहती हूँ मेरे रेत से बने घर ,कलकल बहती नदी ,पुरानी पगडण्डी
जिन पर चल कर हर भूला -भटका थका-हारा राही घर पहुँचता है
तुम्हें अनेकों शुभकामनाओं के साथ बिदा कर ,चाहती हूँ तुमसे एक वचन
अगली बार तुम मुझसे मिलने जरुर आओगे तब फिर हम तुम होंगें
एक साथ इस मुक्त गगन के तले...
- साधना
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