ए चंचल मन तू स्थिर हो जगा ऐसा भाव मन में,
मैं स्वयं प्रभु रंग में रंग जाऊँ
प्रभु का नाम जप मैं स्वयं शिव हो जाऊँ,
सहजता बस जाये मेरे जीवन में
और मैं स्वयं सहज रूप से शिव हो जाऊँ
भूल माया मोह का बंधन,
भूल तमस को माया मोह के
अथाह सागर से सहज रूप से पार हो जाऊँ
इन्द्रियों की चाहना को भूल परमात्मा के प्रेम रंग में सदा के लिए रंग जाऊँ...
- साधना
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