रोजगार की तलाश में गाँव से शहर आये हुए लोग सड़क किनारे,
नीले गगन के तले रंग-बिरंगे प्लास्टिक व बाँस-बल्ली के सहारे
बनाते एक नन्हा-सा घर...
नन्हा-सा ही सही पर घर को
सुविधा युक्त बनाने की कोशिश होती उनकी,
भीषण गर्मी में बल्ली के सहारे लटका पंखा,
गैस चूल्हा, छोटा सा टीवी
नन्हा-सा घर आबाद रहता खिलखिलाते खेलते बच्चों से...
आशा, उम्मीद, प्यार व परस्पर विश्वास के सहारे
गुलजार रहता उनका घर
उन्हें न भविष्य की चिंता, न चोरी का डर,
न ही घर के टूटने का डर यदि तोड़ भी दिया गया
तो फिर नई जगह पर उसी हौसलें के साथ
उम्मीदों का दामन थामे सड़क किनारे
वे फिर बना लेगें अपना एक नया घर...
- साधना
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