सारा जीवन बीत गया दुनिया भर के रिश्तों,
रस्मों रिवाज़ों, जिम्मेदारियों को निभाने में
कभी सोच भी न सकी अपने बारे में
आज आँखें बंद कर सोच रही हूँ, मैं कौन हूँ?
शरीर क्या है? हर दिन बदलती त्वचा का बदलाव
पहले नर्म मुलायम सी थी, धीरे धीरे झुर्रियों से भरने लगी है
एहसास होता है हम माटी के पुतले हैं
जो एक दिन धीरे-धीरे माटी में ही मिल जाएँगे...
- साधना
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