Monday, March 2, 2015

फागुन के दिन



फागुन की तेज धूप से दिन अलसाये हुए अजगर से हो गए
चारों तरफ सन्नाटा सा है, 
सिर्फ सूखे पत्तों के झड़ने की आवाज सुनाई देती है, 
सड़के सूनी हो चली है, सब कुछ शांत-सा नज़र आता
लेकिन फागुन की रातों में ग्रामीण अंचलों से
फाग के गीतों की सुरीली मस्ती-भरी आवाज, 
मांडल, ढोल व बाँसुरी के मीठे स्वरों को सुन 
थके मांदे लोग भूल जाते है अपनी दिन भर की थकान व सूनापन 
और डूब जाते है आनंद के गहरे समुन्दर में नृत्य करते करते...

- साधना 

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