व्यस्त जीवन के शोर से मन हर पल बेचैन है,
नींद भी आती नहीं, चेतना भी थक-सी जाती,
मन छटपटाता, अँधेरों में रोशनी नज़र आती नहीं,
तपती गर्म रेत-सा मन तपता रहता,
मृगतृष्णा में भटकता रहता,
पर बारिश की ठंडी फुहारे नज़र आती नहीं,
ठंडी-ठंडी पवन के इंतज़ार में मन हर पल भटकता,
नर्म गीली मिट्टी पर कदमों के निशान,
बनते ही हर पल बिखरे से नज़र आते,
उलझनों से निकलने की चाह में,
मन और भी उलझता जाता...
- साधना 'सहज'
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