जहाँ से गुज़रती कर्क रेखा पर बसा एक शांत शहर,
जो इस वक़्त महाकाल की नगरी के
साथ-साथ मायानगरी सा नज़र आता।
चारों और आस्था, भक्ति का अलौकिक दृश्य नज़र आता,
क्षिप्रा नर्मदा के पावन संगम के कारण
और भी पवित्रता का एहसास दिलाता।
चारों और फहराती रंग-बिरंगी ध्वजाएँ,
महाकाल के मंदिर का स्वर्ण मंडित कलश,
और पताकाओं को छूती सूरज की किरणों से जगमग सा नज़र आता।
कही जलते कंडों के बीच धुनी रमाते साधु,
शंख बजाते भक्त, कभी त्रिशूल, कभी डमरू,
हर हर महादेव की आवाज़ों से गूंजते घाट,
हर ओर देशी-विदेशी भक्तों का ताँता नज़र आता।
शाही स्नान पर महामंडित गुरुओ, नागा साधुओं का शाही स्नान,
शाही जुलूसों का वैभव अपनी अनुपम छटा बिखेरता,
तपती धुप में आस्था से भरे श्रद्धालु डुबकियां लगाते नज़र आते।
सांझ होते ही अनुपम विद्युत साज-सज्जा से
दमकते घाट, मंदिर, आश्रम और शहर निराला नज़र आता।
आकाश चाँद-सितारों से भर रात्रि के आने का एहसास दिलाता,
पर लगता है मानो शहर सोना ही भूल गया है,
क्योंकि हर श्रद्धालु अमृतमयी कुंड में डूबकर
अमृतमयी हो जाना चाहता हो
- साधना 'सहज'
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