सुबह होते ही सड़कों पर कामवाली बाइयों की आवाजाही नज़र आती,
उनकी सुबह ही बर्तन साफ़ करने व झाड़ू पोंछे से होती,
सड़क पर भी वे सोचती-विचारती सी नज़र आती,
उन्हें हर पल जल्दबाजी होती,
झटपट सारा काम पूरा कर घर पहुँचती,
लेकिन घर पहुँचने पर वही शराबी पति से झिकझिक,
टूटी खटिया, रोते बीमार बच्चे,
झोपड़ी से रिसता पानी नज़र आता,
दिनभर की परेशानियों से तन-मन से थक उदास हो जाती,
रात को सोते वक्त ही महसूस कर पाती,
वह अपनी सांसों का स्पंदन और जीवित होने का अहसास...
उनकी सुबह ही बर्तन साफ़ करने व झाड़ू पोंछे से होती,
सड़क पर भी वे सोचती-विचारती सी नज़र आती,
उन्हें हर पल जल्दबाजी होती,
झटपट सारा काम पूरा कर घर पहुँचती,
लेकिन घर पहुँचने पर वही शराबी पति से झिकझिक,
टूटी खटिया, रोते बीमार बच्चे,
झोपड़ी से रिसता पानी नज़र आता,
दिनभर की परेशानियों से तन-मन से थक उदास हो जाती,
रात को सोते वक्त ही महसूस कर पाती,
वह अपनी सांसों का स्पंदन और जीवित होने का अहसास...
-- साधना
No comments:
Post a Comment