द्वारका के पास वन में घूमते हुए कुछ ऋषि आ गए। वे महापुरुष केवल भगवत चर्चा करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते थे। उसी वन में यदुवंश के राजकुमार भी खेलने-कूदने के लिए निकले थे। वे सभी युवक थे ,स्वछन्द व बलवान थे। ऋषियों को देख कर यादव कुमारों के मन में परिहास करने की सूझी।
जाम्बवती-नंदन साम्ब को सबने साड़ी पहनाई, उसके पेट पर कपडा बांध दिया। उन्हें साथ ले कर ऋषियों के पास गए। साम्ब ने घूँघट निकाल कर मुख छुपा रखा था। साथियों ने ऋषियों से बनावटी नम्रता से प्रणाम करके पूछा "यह सुन्दरी गर्भवती है और जानना चाहती है कि उसके गर्भ से क्या उत्प्पन होगा। आप सभी सर्वज्ञ है ,भविष्यदर्शी है आप कुछ बताने की कृपा करें।" अपनी शक्ति का उपहास होते देख सभी मुनिगन क्रुद्ध हो गए। उन्होने कहा "मूर्खों अपने पूरे कुल का नाश करने वाला मूसल उत्पन्न करेगी ये।"
भयभीत राजकुमार घबराकर वहा से लौट गए। साम्ब के पेट पर बन्धा वस्त्र खोला तो उसमे से लोहे का एक मूसल निकला। अब कोई उपाय तो था नहीं, यादव कुमार राजसभा में आये और सारा प्रसंग राजा उग्रसेन को बता दिया। महाराज की आज्ञा से उस मुसल को कूट-कूट कर चूर्ण बना दिया गया और बचे हुए लोहे के टुकड़े को समुद्र में फेंक दिया गया।
मुनियों के श्राप से वह लोहे का चूर्ण घास के रूप में उग गया। समुद्र में फेंके गए टुकड़े को एक मछली ने निगल लिया। वह मछली मछुआरे द्वारा पकड़ ली गई। मछली के पेट से निकले लोहे के उस टुकड़े से बाण की नोक बन गई। वही बाण श्रीकृष्ण के चरण में लगा, और यादव-वीर समुद्र-तट पर परस्पर एक दूसरे से ही युद्ध करने लगे, शस्त्र ख़त्म होने पर घास से ही आघात करने लगे। इस प्रकार एक विचारहीन परिहास के कारण यदुवंश नष्ट हो गया।
- धार्मिक ग्रंथ से प्रस्तुत
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