मेरा पागल मन जो उड़ा करता है
सुनहरे पंखो पर होकर सवार,
आकाश को छू कर, फिर ज़मी पर भी चलता है
सबसे आगे भीड़ में बार-बार,
आसमान से जमीं तक की ऊँचाइयों को
बार-बार नाप कर बन जाता है इस प्रकृति का राज़दार
सूरज, चाँद, सितारों को हमजोली बना
उनके साथ करता कही अनकही बातें,
कभी हमजोली बन खेलता, कभी झगड़ता, कभी मान भी जाता
चांदनी रातो में सो कर खो जाता सुनहरे सपनो में,
सुबह होने पर सूरज गुदगुदा कर उठाता,
देखने के लिए फिर से नए स्वपन
और जानने के लिए नए-नए राज़…
सुनहरे पंखो पर होकर सवार,
आकाश को छू कर, फिर ज़मी पर भी चलता है
सबसे आगे भीड़ में बार-बार,
आसमान से जमीं तक की ऊँचाइयों को
बार-बार नाप कर बन जाता है इस प्रकृति का राज़दार
सूरज, चाँद, सितारों को हमजोली बना
उनके साथ करता कही अनकही बातें,
कभी हमजोली बन खेलता, कभी झगड़ता, कभी मान भी जाता
चांदनी रातो में सो कर खो जाता सुनहरे सपनो में,
सुबह होने पर सूरज गुदगुदा कर उठाता,
देखने के लिए फिर से नए स्वपन
और जानने के लिए नए-नए राज़…
- साधना
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