Wednesday, July 10, 2013

जल-प्रलय

while going to kedarnath-- INDIA

विशाल पर्वत खंड-खंड हो
बह गए जल प्रलय के साथ,
स्तब्ध रह गयी दुनिया
देख प्रलय का हाल,
प्रकृति मौन रह सहती रही
सदियों से मानव का हर मजाक,
कहीं पेड़ों की अंधाधुंध
कटाई कहीं पर्वतों की छँटाई,
कभी धरती का सीना चीरती सुरंगें,
परिवर्तन कर विकास करने की जिद,
परिवर्तन आया आसान हुई हर राह,
मानव खुद को समझ बैठा भगवान,
पर प्रकृति और न सह सकी ये क्रूर मजाक,
उसकी छटपटाती आत्मा व नयनों से निकली जल-धारा
रौद्र रूप रख बह चली, ले विनाश का रूप,
पल भर में चारों और वीरानगी छा गई,
अपने, अपनों से सदा के लिए बिछुड़ गए,
कुछ राजा थे, रंक हो गए,
लाशों से पट गयी देवभूमि,
बिन बताए आये प्रलय ने कर डाला सर्वनाश,
प्रकृति बिन मांगे ही
सहज भाव से हमें देना चाहती थी प्यार-दुलार,
पर स्वार्थी मानव अपनी हठ में समझ न सका
प्रकृति का निर्मल प्यार-दुलार...

- साधना

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