बारिश की फुहारों से
भीगी धरती में
चारों ओर नए-नए अंकुर फूट रहे हैं।
हरियाली अपना साम्राज्य फैला
बन बैठी है धरती की महारानी
बूढ़ा नीम अंतिम पड़ाव पर सोच रहा है,
कल मैं रहूँ न रहूँ
मुझे काट-पीट कर,
कुछ शाखाओं को जलाया जाएगा,
कुछ से किसी की घर की चौखट बन जाऊंगा,
कहीं किसी बीमार की दवाई बन जाऊंगा,
हर पल किसी के काम ही आऊँगा
फिर भी हर पल अपने नए रूप में,
मैं देख सकूँगा पृथ्वी का नित नया श्रृंगार …
भीगी धरती में
चारों ओर नए-नए अंकुर फूट रहे हैं।
हरियाली अपना साम्राज्य फैला
बन बैठी है धरती की महारानी
बूढ़ा नीम अंतिम पड़ाव पर सोच रहा है,
कल मैं रहूँ न रहूँ
मुझे काट-पीट कर,
कुछ शाखाओं को जलाया जाएगा,
कुछ से किसी की घर की चौखट बन जाऊंगा,
कहीं किसी बीमार की दवाई बन जाऊंगा,
हर पल किसी के काम ही आऊँगा
फिर भी हर पल अपने नए रूप में,
मैं देख सकूँगा पृथ्वी का नित नया श्रृंगार …
- साधना
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