वर्षा ऋतु के समापन के बाद आता है जगमागते दीपों का त्यौहार दीपावली,
परस्पर मेल मिलाप का,मिलकर खुशियाँ मनाने का।पर मुझे लगता है कि दीपावली इन सब ख़ुशियों के साथ ही, पुरानी यादों को ताज़ा करने का।
बारिश के बाद जब हम पुरानी अलमारी में रखे कपड़ों की नमी दूर करने
के लिए धूप में डालते हैं, तब बच्चे हों या बड़े सभी थोड़ी थोड़ी देर में कहते नज़र आते हैं, कि अरे ये तो मेरा वो वाला शर्ट हैं जो मेरी नानी या दादी ने मुझे मेरे जन्म दिन पर दिया था। ये जींस पापा मेरे लिए मुम्बई से लाये थे, ये फ्रॉक मेरे बचपन की है जो मामाजी ने दिलाई थी। ऐसी बातें पूरे समय होती रहतीं हैं।
विशेषकर जो माँ होती है, उनकी यादों का खज़ाना तो खुल जाता है। जब बेटा बेटी के छोटे-छोटे स्वेटर, मोज़े, पायजामे आदि कपड़े हाथों में आते हैं तो तब आँखों के सामने वे सारे दृश्य चलचित्र की भांति घूमने लगते हैं जब उन्होंने अपने ममता भरे हाथों से उन्हें बनाया था।
इस कपड़ों को गठरी से निकाल कर धूप में सुखाना और फिर यत्न से वापस रखना एक अदभुत अनुभूति होती है, इसी समय सबकी बातें भी सुननी पड़ती हैं कि क्या जरुरत हैं इन पुरानी चीजों को संभाल कर रखने की, किसी गरीब को दे दो । पर पुरानी यादों को जीवित रखने के लिए , सबकी बातों को अनसुना कर माँ फिर उन कपड़ों और वस्तुओं को सहेज कर वापस अलमारी रख देती है, अपनी उन यादों की धरोहरों को, फिर से अगले वर्ष धूप में सुखाने को.......
साधना
परस्पर मेल मिलाप का,मिलकर खुशियाँ मनाने का।पर मुझे लगता है कि दीपावली इन सब ख़ुशियों के साथ ही, पुरानी यादों को ताज़ा करने का।
बारिश के बाद जब हम पुरानी अलमारी में रखे कपड़ों की नमी दूर करने
के लिए धूप में डालते हैं, तब बच्चे हों या बड़े सभी थोड़ी थोड़ी देर में कहते नज़र आते हैं, कि अरे ये तो मेरा वो वाला शर्ट हैं जो मेरी नानी या दादी ने मुझे मेरे जन्म दिन पर दिया था। ये जींस पापा मेरे लिए मुम्बई से लाये थे, ये फ्रॉक मेरे बचपन की है जो मामाजी ने दिलाई थी। ऐसी बातें पूरे समय होती रहतीं हैं।
विशेषकर जो माँ होती है, उनकी यादों का खज़ाना तो खुल जाता है। जब बेटा बेटी के छोटे-छोटे स्वेटर, मोज़े, पायजामे आदि कपड़े हाथों में आते हैं तो तब आँखों के सामने वे सारे दृश्य चलचित्र की भांति घूमने लगते हैं जब उन्होंने अपने ममता भरे हाथों से उन्हें बनाया था।
इस कपड़ों को गठरी से निकाल कर धूप में सुखाना और फिर यत्न से वापस रखना एक अदभुत अनुभूति होती है, इसी समय सबकी बातें भी सुननी पड़ती हैं कि क्या जरुरत हैं इन पुरानी चीजों को संभाल कर रखने की, किसी गरीब को दे दो । पर पुरानी यादों को जीवित रखने के लिए , सबकी बातों को अनसुना कर माँ फिर उन कपड़ों और वस्तुओं को सहेज कर वापस अलमारी रख देती है, अपनी उन यादों की धरोहरों को, फिर से अगले वर्ष धूप में सुखाने को.......
साधना
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