बादलो से लुकाछुपी करता थक सा गया है चाँद,
कभी पूर्ण आभा से दमकता दिख जाता,
पल भर में मटमैला-सा हो जाता,
चलता रहता रात-भर सितारों के बीच,
कुछ कहता, कुछ सुनता सा,
इस छोर से उस छोर तक,
चलता रहता बिना आराम किए,
पर भोर के उजियारे के आने पर,
मुरझा-सा जाता चाँद,
फिर थक कर उषा की झोली में,
पुनरागमन के लिए सो जाता चाँद...
-- साधना 'सहज'
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