Friday, April 14, 2017

मुक्ति की चाह


हर पल मुक्ति की तलाश में भटकता मन
कभी पर्वत की गगनचुम्बी शिखर पर,
कभी झिलमिलाते सितारों से भरे आसमान में,
तारों की झंकार सुन भटक जाता मन,
थक जाती रात और झिलमिल सितारे,
सुनकर आहट चहचहाते पक्षियों की लौट जाती रात,
सो जाते सितारे भोर के सूरज के आने से पहले,
मैं अपनी मुक्ति की राह देखती रहती, सुबह की सुनहरी धूप से 
चमकते गगनचुम्बी शिखरों की ओर अपनी बाहें फैलाए...

- साधना 'सहज'

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