हमारा हर दिन पुनर्जन्म की तरह होता है,
हम रोज एक नया जीवन जीकर रोज मरते हैं
फिर क्यूँ व्यर्थ में हम जीवन की शांति को खोते हैं
जिंदगी प्रेम, नफरत, मिलना, बिछुड़ना, रूठना, मनाना
इन्ही एहसासों से परिपूर्ण है
पता नहीं होता
जिंदगी कब किस राह पर मुड़ जाएगी
कब, कहाँ किस तरह
कोई अपना मिलकर जुदा हो जाएगा
जिंदगी के टेढ़े-मेढ़े कठिन रास्तों पर चलकर
जीवन बिताना है
चलना ही ज़िंदगी है
चलते ही जाना है......
- साधना
No comments:
Post a Comment