कान्हा,
मेरा मन करुण क्रंदन कर,
दुख भरी आवाज़ से तुम्हें पुकारता है,
मेरे मन की हलचल में,
दुख भरे आँसू है,
तुमने वचन दिया था कि,
जब भी यह संसार दुखों में डूब रहा होगा,
धर्म अधर्म में बदलने लगेगा,
तुम रूप बदलकर लौट आओगे,
इस संसार कि डूबती नैया पार लगाने,
मैं ये भी जानती हूँ,
दुखों से दूर भागना,
दुख दूर करने का हल नहीं है,
स्वयं सामना करना होगा,
तभी सुख लौटेगा,
फिर भी आंसुओं से डबडबाई,
आँखों से मैं तुम्हारी राह तकती रहती हूँ...
- साधना
Great lines! : )
ReplyDelete