मैं बहुत समय बाद अपने शहर पहुंची,
वहां सब अजनबी से लगे कोई मेरा अपना न था
सारे रिश्ते नाते अजनबी से लग रहे थे
रिश्तो में अनमनेपन का अहसास था
जिन्हें मै दिल से प्यार करती थी,
अपना कहती थी,
वो भी अनमने से थे
मात्र औपचारिकता बची थी रिश्तो में,
मुझे अहसास हुआ
यहाँ कोई अपना नहीं था
कदम लौट पड़े अनजान डगर पर
दूर बहुत दूर क्षितिज के उस पार .....
- साधना
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