नन्ही सी किलकारी गूंजी घर आँगन में जन्म हुआ कन्या का...
धीरे-धीरे बड़ी हुई माता-पिता, भाई के प्यार दुलार में,
अनुशासन में बंध बड़ी हुई,
ब्याह हुआ हुई पराई,
पति और ससुराल के नियमों में बंध निकला जीवन,
पुत्रवती हो बड़ी प्रसन्न हुई
पर अब था पुत्र का बंधन
हर पल नारी जीवन में सिर्फ बंधन ही बंधन,
चाह कर भी कभी जी न सकी वो मुक्त जीवन...
- साधना
No comments:
Post a Comment