नन्हे से पैरों ने जब डगमग हो रखा था पहला कदम,
घर-आँगन में गाँवो की गलियों, चौबारों, पगडंडियों में,
लटपट हो दौड़ा था बचपन, नर्म मुलायम दूब पर हुआ था,
मखमली कालीन का एहसास,
पैरों में चुभती रेत, कंकरीले पत्थर कराते थे,
जीवन में ऊँच-नीच का एहसास,
अब हर समय जूते-चप्पल पहन भाव-विहीन हो मानव,
कर नहीं पता जीवन की सत्यता का एहसास
-साधना 'सहज'
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