Sunday, March 17, 2013

मूर्ख को उपदेश देना अहितकर होता है

Monkeys in a Lewes Fleamarket

किसी जंगल में एक विशाल शमी का वृक्ष था। उसकी शाखा पर गोरैया का जोड़ा घोंसला बनाकर रहता था। एक दिन आकाश काले बादलों से घिरा था और वर्षा भी हो रही थी। थोड़ी देर में बारिश तेज़ हो गयी और ठंडी हवाएँ चलने लगी। इतने में एक बंदर ठंड से दाँत कटकटाते हुए उस वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया। गोरैया ने बंदर से कहा- तुम दिखते तो मानव जैसे हो, एक घर क्यों नहीं बना लेते, जिससे हर मौसम में तुम्हारी रक्षा हो। 

बंदर को गुस्सा आ गया और वह बोला- तू मेरा मज़ाक उड़ाती है, चुप क्यों नहीं रहती। गोरैया फिर बोली- अगर मकान नहीं बना सकते तो कोई गुफा ही ढूंढ लो ताकि कष्ट से बच सको। इतना सुनते ही बंदर को गुस्सा आ गया और बोला- इतनी छोटी होकर तू मेरा मज़ाक उड़ा रही है। जिस घोंसले पर तुझे अभिमान है, मैं उसे अभी उजाड़ देता हूँ। यह कहकर उसने घोंसले के टुकड़े-टुकड़े कर दिये।

बेचारी गोरैया तो बंदर को नेक सलाह दे रही थी पर उसे क्या मालूम था कि मूर्खों को सलाह देने का परिणाम भयंकर होता हैं। इसलिए मूर्खों को उपदेश नहीं देना चाहिए क्योंकि उपदेश उनके क्रोध को बढ़ता है और वो गुस्से के कारण ये नहीं समझते कि उपदेश उनकी भलाई के लिए हैं।    
- पंचतंत्र की कथा से प्रस्तुत

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