खिल उठते है चटख रंग के पलाश के फूल,
मन और आँखें तृप्त हो जाती है फूलों को देखकर,
जीवन खुशी से सराबोर हो जाता,
हर पल उत्साह के साथ बासन्ती खुशियाँ मनाता,
भौरों की गुनगुनाहट और चिड़ियों की चहचहाहट को देख वृक्ष भी लहराता,
झूम-झूम कर हर आने-जाने वाले पंछी से बतियाता,
पर जब भी अपनी शाखों को पर्ण-विहीन पाता,
कुछ उदास सा हो जाता,
पर अपने आप को समझता कि खुशी के साथ गम,
मिलन के साथ जुदाई जुड़ी हुई है।
तभी एक नया पंछी डाल पर बैठ कर चहचहाता
और पलाश अपना गम भूल जाता...
- साधना
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