जेठ की चटक चमचमाती,
तेज धूप से सभी निढाल से हो जाते,
जब बादल का कोई छोटा-सा टुकड़ा,
आसमान पर छा जाता,
तो लगता किसी ने झीनी-सी चुनरिया लहरा दी हो,
तपन से बचाने के लिए,
पीली सरसों के खेतों में,
लहराती इठलाती फिरती गर्म हवाएँ,
अपना परचम फैलाती,
चुलबुल सी बुलबुल पेड़ों की घनी टहनियों,
पर अपने मीठे स्वर में,
अपना नया राग गुनगुनाती,
कबूतरों की टोली मैदानों में,
अपनी गुटर गु की धव्नि फैलाती,
सूर्य के अस्त होते ही,
सुवासित मंद-मंद पवन,
अपना स्पर्श करा सबके मन को,
राहत की सांस दिला,
शीतलता का अहसास कराती...
- साधना
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