बचपन में हर पल प्यार मिला, दुलार मिला अपनों का,
फुर्र-फुर्र उड़ते पंछी-सा बीत गया बचपन,
बचपन के जाते ही जीवन कभी-इधर, कभी-उधर डगमगाने लगा,
सीमित होने लगे पल, दुख-सुख लगे घेरने,
रोक-टोक लगने लगी हर पल,
ये करो-ये ना करो की आवाजें आने लगी,
मन बैचेन होने लगा छटपटाने लगा,
फिर कहीं से स्नेह से भरे बोल सुन बैचेनी खत्म हुई,
जीवन नई तरंगों से भर उठा,
मन आभार प्रकट करने लगा उन स्नेह से भरे शब्दों का,
यदि न मिल पाता स्नेहपूर्ण साथ,
तो जीवन नीरस होकर अतृप्त सा रह जाता...
- साधना
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