उनके पास का धन भी खत्म होने लगा था। उन्होनें सोचा जो थोड़ा-सा धन बचा है इससे दो बछड़े खरीद लिए जाए फिर खेती करके खूब धन कमाया जाए। उन्होनें ऐसा ही किया, बछड़े खरीद कर सोचा इन बछड़ो से जुताई का काम ले कर खूब अनाज पैदा कर के बहुत सारा धन कमाऊँगा।
फिर वे बछड़ो को परस्पर जोत कर (साथ में बांधकर) हल चलाने की शिक्षा देने के लिए घर से निकल पड़े। जब गाँव से बाहर निकले तो रास्ते के बीच में एक ऊँट रास्ता घेर कर बैठा था। दोनों बछड़े ऊँट को बीच में कर उसके ऊपर से निकलने लगे, किन्तु ज्यों ही उसकी गर्दन के पास पहुँचें तो ऊँट को बड़ी चुभन मालूम हुई।वह रोष में भरकर हड़बड़ा कर उठ खड़ा हो गया। दोनों बछड़े जो परस्पर बंधे हुए थे ऊँट के दोनों ओर लटक गए। बछड़ों की साँसे रुक गयी और वो मर गए। यह दृश्य मुनि अपनी आँखों के सामने देख रहे थे पर उनके वश में कुछ भी नहीं था।
अतः वे तृष्णा(लोभ) से मुख मोड़कर बोल पड़े- "मनुष्य कितना भी बुद्धिमान क्यूँ न हो पर जो उसके भाग्य में नही है, उसे वो किसी भी प्रयत्न् से प्राप्त नहीं कर सकता, हठपूर्वक किए गए पुरषार्थ से कुछ भी प्राप्त नहीं होता।"
(नीतिकथाओं से प्रस्तुत)
- साधना
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