Wednesday, January 30, 2013

जीवन नैया

Regatta.
जीवन नैया डूबने को हैं,
नदियाँ, झरने सब अपनी गति से बह रहे हैं,
चाँद-सूरज सब समय पर निकल रहे हैं,
मेरी ही जीवन नैया डगमग हो तैर रही हैं,
कभी इस पार कभी उस पार,
प्रभु इक मंदिर से सुनाई देनेवाले प्रार्थना के स्वर,
मुझे खींच रहे है तुम्हारी तरफ,
मेरी नैया तेज़ी से बह चली है तुम्हारी ओर,
तुम्हारे सुंदर-सलोने मुखड़े के दर्शन की आस में... 
- साधना

Sunday, January 27, 2013

रिश्ते

Don't Let Go.
रिश्तों के रंग अजीब होते है,
यह सिर्फ एक एहसास है जिन्हें महसूस किया जाता है,
ये कभी बारिश बन हमें सुकून देते हैं,
कभी भीगी लकड़ी की तरह जल कड़वा धूँआ देते,
तन-मन को भिगोकर दुख में अपने बन जाते,
कहीं कोई अपना पराया न हो जाये, 
इस अंजाने डर से डरा जाते,
यही सोच-सोच कर ज़िंदगी चलती रहती,
नये-नये रिश्ते-नातों में हम जीवन ढूंढते रहते,
रिश्ते यूं ही उलझ जाते और मन कड़वाहट से भर उठता,
तो कही से फिर नयी सुगंध आती,
जब सूरज ढल जाता तो मन यादों में डूब गमगीन हो जाता,
पर सुबह के आते ही मन फिर मुस्कुराने लगता,
ज़िंदगी सवाल बन हर पल नये जवाब मांगती,
दो पल के लिए रिश्तों से दूर होकर शांत भाव से
मनन करने पर ज़िंदगी फिर खूबसूरत हो जाती।
- साधना

Friday, January 25, 2013

नीतिकथा (कौवा और मोर के पंख)

   एक कौवा था उसे एक जगह बहुत से मोर के पंख पड़े हुए मिले। कौवे ने सोचा- मैं इन मोर पंखों को अपने पंखों पर लगा लूँ, तो मैं भी मोर के समान सुंदर दिखने लगूँगा। यह सोचकर उसने मोरपंखों को अपने पंखों पर लगा लिया और अन्य कौवों के पास जाकर कहने लगा- तुम लोग बड़े नीच और कुरूप हो, अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। यह कहकर मोरों की टोली में सम्मिलित होने चला गया। 
मोरों ने उसे देखते ही पहचान लिया और सभी मोरों ने उसके मोर पंख निकाल दिये और उस पर प्रहार करने लगे। कौवे ने भागकर अपनी जान बचाई और फिर कौवों की टोली में शामिल होने चला गया। ठीक उसी तरह कौवों ने भी उसे अपमानित किया और कहा- तू बड़ा नीच और निर्लज्ज है, तूने हमें अपमानित किया। अब तू यहाँ से भी भाग जा और इस तरह उस मूर्ख कौवे को सभी कौवों ने भगा दिया।
   इसलिए दूसरों की नकल का प्रयास छोड़कर अपने गुण-अवगुण जानकर मर्यादा में रहे तो किसी से भी अपमानित नहीं होना पड़ता।



-(संत ईसप की नीतिकथाओं से प्रस्तुत)

Wednesday, January 23, 2013

सूना जीवन

Walking
सूना-सूना जीवन है उदास राहें,
एक धुंधला सा स्वप्न जो मेरी आँखों में है,
वहीं जहाँ मेरी आशाएँ बसती है,
अंधकार में झरते हुए झरने की तरह,
जहाँ तुम और तुम्हारी यादें बसती है,
मेरे अंतर मन की पुकार आकाश में गूंज बनकर मौन हो जाती है,
मेरा जीवन बसता है तुम्हारे इंतज़ार में कभी इस पार कभी उस पार... 
- साधना 

Tuesday, January 22, 2013

नीतिकथा (कछुआ और गरुड़)

The Tortoise and the Birds - Richard Heighway
एक कछुआ यह सोचकर बहुत दुखी होता था कि वह उड़ नहीं सकता। एक दिन वह गरुड़ पक्षी के पास गया और बोला- मुझे उड़ने की बहुत इच्छा है, अगर तुम मुझे उड़ना सीखा दो तो मैं समुद्र के सारे रत्न निकाल कर तुम्हें दे दूँगा। गरुड़ ने कछुए को बहुत समझाया कि तुम इस इच्छा को त्याग दो, तुम नहीं उड़ पाओगे पर कछुआ नहीं माना।

उसने कहा नहीं उड़ सका तो गिर कर मर जाऊँगा लेकिन एक बार उड़ना चाहता हूँ। गरुड़ ने हँसकर कछुए को उठा लिया और काफी ऊँचाई पर पहुँचा दिया और कहा- अब उड़ना शुरू करो। यह कहकर कछुए को छोड़ दिया, उसके छोड़ते ही कछुआ पहाड़ी पर गिरा और उसके प्राण निकाल गए इसलिए हमें अपनी क्षमता के अनुरूप ही इच्छा रखनी चाहिए अन्यथा बहुत दुख उठाना पड़ता है। 


(संत ईसप की नीतिकथाओं से प्रस्तुत)

पतंग

the girl, the kite
पतंग को उड़ता देख मन उड़ना चाहता था,
अनंत की ऊँचाइयों को छूना चाहता था,
मैंने माँ से पूछा- मैं उड़ना चाहती हूँ पतंग की तरह,
माँ ने कहा- पतंग की ऊँचाई एक नाज़ुक सी डोर से बंधी है,
जिसे काटने के लिए बहुत से लोग खड़े हैं,
माँ से मैंने कहा- तुम नहीं चाहती ऊँचाइयों को छूना,
उन्होनें मना किया कहा मेरी ऊँचाइयाँ,
मेरा घर-आँगन और परिवार हैं, बाहर काँटों से भरा संसार है, 
पर मेरा मन नहीं माना क्योंकि जब मैं छोटी थी,
और रोती थी तब माँ आसमान में उड़ती पतंगें व
परिंदों को दिखाकर मुझे चुप करती थी,
उसी वक़्त से मेरा मन उड़ना चाहता था, 
हर कामयाबी को हासिल करना चाहता था
एक दिन मैंने सपनों में बहुत सी रंग-बिरंगी पतंगें उड़ती देखी,
उन्होनें पूछा- तुम भी हमारे साथ हवा में उड़ोगी,
मैंने हामी भर दी पर जब आँखें खुली तो मैं ज़मी पर थी।
- साधना

Saturday, January 19, 2013

इंतज़ार

(wait) / wallpaper
उस दिन ठिठुरा देने वाली ठंड थी,
बाहर कोहरा छाया हुआ था,
सन्नाटे के अलावा बाहर कुछ भी न था,
अचानक लगा बाहर आहट हुई किसी के आने की,
कौवा छत पर बैठ कांव-कांव कर किसी 
के आने का संदेश दे रहा था,
आँखें इंतज़ार कर रही थी किसी आगंतुक का,
मन बेचैन हो कागा का स्वर सुन रहा था,
सर्द थपेड़े शरीर को काँपने पर मजबूर कर रहे थे,
अलाव की आग भी ठंडी हो चली थी,
पर मन नहीं मान रहा था...
ये इंतज़ार था एक बूढ़ी माँ का,
जिसका बेटा सरहद पर देश की रक्षा कर रहा था
- साधना