दिन ढलने लगा सूर्यदेव पधारे अस्ताचल को, शंख की ध्वनि से साँझ का आगमन हुआ, दमक उठे घर आँगन , तुलसी चौरे पावन दीप के प्रकाश से पवित्र घण्टियों का नाद हुआ, उठ गए माँ के पवित्र हाथ विनती के लिए मद्धम स्वर में प्रार्थना गूंज उठी हे ,संझा मइया सबका भला करना हर घर व सारे संसार में सदा सुख-शांति बनाए रखना...
शांत नीरव निस्तब्ध लम्बी रातों में सन्नाटों को चीरती निशाचर पक्षियों कि चीखती आवाज़ें कुत्तों का सस्वर करुण रुदन एक बूढ़ी माँ के मन को उद्वेलित कर जाता, बोझिल मन विचारों की दुनिया में खो जाता, मन की कई खिडकियाँ खुलती-बंद होती रहती मन के झरोखों में बंद यादें आँखों के आगे तैर जाती जीवन में बिताए हुए सुख-दुःख के पल याद आते आँखों में नीर भर आता इन्हीं बीती यादों के सहारे बिताती माँ , माँ की ममता को भूल चुके बच्चों से दूर रह कर अपना शेष जीवन