Monday, September 30, 2013

टूटे रिश्तों की चुभन

Broken Heart Grunge

मैं उन टूटे रिश्तों की चुभन महसूस कर रही हूँ
जो इस संसार की भागमभाग में टूट कर खो गए हैं
रिश्तों को सुखद व सुवासित बनाना चाहती हूँ,
पर बहुत कठिन सा लगता है, रिश्तों  को आसानी से बदल पाना,
क्योंकि चारो ओर छल कपट से भरी दुनिया नजर आती है
अपने ही अपनों को छलते हैं,
कोशिशो में सफलता का विश्वास ले
हम इन रेगिस्तानो में भटकते है
मन सोचता है एक बार फिर मिलकर
हम तुम कुछ बातें करते
कुछ तुम कहते कुछ हम कहते,
मिल कर दोनों के आंसूओं के सैलाब में
बह जाते सारे गिले-शिकवे
सुबह होने पर रक्तिम आभा लिए
एक नया सूरज बादलों की ओट से
मुस्करा कर निकलता
और हम भूल जाते टूटे रिश्तों की चुभन...
- साधना

Sunday, September 22, 2013

ममता की छांव

Tree hugs!

माँ, तुमने स्वप्निल आँखों से,
अपने नर्म नाज़ुक हाथों से, 
एक छोटा सा बीज रोपा था धरती की गहराई में,
अब स्नेह के जल को पाकर,
वह धीरे-धीरे घुटनों की ऊँचाई तक बड़ा हो,
धीरे-धीरे विशाल आकार लेने लगा है,
जिसके हर पत्ते फूल-फल से,
तुम्हारे हर पल आसपास होने का अहसास होता है,
उसके फूलों में तुम्हारे निर्मल प्यार की खुशबू है,
जो मंद मंद पवन को सुवासित कर चारों ओर महकती है,
फलों में तुम्हारे प्यार की मिठास व निश्छल प्रेम का अहसास है,
जो मुझे भर देता है आत्म विश्वास से,
उसकी घनी छाया में महसूस होता है,
तुम्हारी गोद में सिर रखकर सोने सा सुकून व सभी आत्मीय जनों का आशीर्वाद....
- साधना

Thursday, September 12, 2013

मित्र की पहचान

Wrestling with a trained bear / Lutte avec un ours dressé

दो मित्र थे। एक दिन दोनों भ्रमण के लिए निकले। सँयोगवश उसी समय वहाँ एक भालू आ गया। एक मित्र भालू को देखते ही अत्यन्त भयभीत हो कर, दूसरे मित्र की परवाह किये बिना ही भाग कर निकट के पेड़ पर चढ़ गया। दूसरा मित्र अकेले भालू के साथ लड़ना असम्भव जानकर मुर्दे के समान धरती पर सो गया।

उसने पहले से सुन रखा था कि भालू मरे हुए आदमी को हानि नहीं पहुँचाता है। भालू ने आकर उसके नाक, कान, मुख, आँख, तथा सीने की परीक्षा की और उसे मरा हुआ समझ कर चला गया।

भालू के जाने के बाद पहला मित्र पेड़ से नीचे उतरा। उसने मित्र से जाकर पूछा -भाई ,भालू तुम्हारे कान में क्या कह रहा था। मैंने देखा कि वह बड़ी देर तक तुम्हारे कान से अपना मुख लगाये हुए था। दूसरा मित्र बोला -भालू मुझे यह कह गया कि 
"जो मित्र संकट के समय छोड़ कर भाग जाता है उसके साथ फिर कभी भी मित्रता नहीं रखना चाहिए।"
- नीतिकथा से प्रस्तुत

Saturday, September 7, 2013

अनैतिकता

186 - I'm afraid that someone else will hear me.

मानवता बिक चुकी है,
चारों ओर अराजकता का राज है,
साधू के वेष में शैतानों का बोलबाला है,
इस छल -कपट से भरी दुनिया में,
आस्था-विश्वास जैसे शब्द निरर्थक हो गए हैं,
मन भूल जाना चाहता है ऐसे शब्दों को,
जो अब सिर्फ किताबों में रह गए हैं,
हर तरफ झूठ, अनैतिकता और वहशीपन का बोलबाला है,
मानव इंसानियत खो चुका है, हर तरफ सिसकियों का राज है,
इस आधुनिक समाज का सृजनकर्ता बन,
मानव ने चारों ओर फैला दी है बर्बादी,
जिसमें नई-नई इमारतें,
स्वर्ग से सुन्दर उपवन तो हैं,
पर प्यार, करुणा व दया से भरे हुए इन्सान विलुप्त हो गए हैं,
हर गली चौराहों पर मौजूद है वहशी दरिंदें, जो अपनों को ही लूट-खसोट रहे हैं,
पृथ्वी भी शर्मिंदा हो जल समाधि लेने को उतावली सी है,
ज़रुरत है समर्थ व सक्षम बन अराजकता का संहार करने की…
 - साधना