Thursday, October 24, 2013

सुनहरे स्वप्न

Golden Haze
नींद नहीं आती रातों में,
मन खोया खोया सा रहता है, 
सुनहरे स्वप्न आना चाहते हैं,
झील सी गहरी आँखों में,
चुपके से घर में दरवाजे के पीछे छुप जाते हैं,
कभी झरोखों से झाँकते नज़र आते हैं,
कभी घर आँगन में घूमते फिरते नज़र आते हैं,
कभी मुक्त गगन उड़ते हुये,
तो कभी नदिया के जल में लहराते उतराते हैं,
मैं चाहती हूँ शांत रातों में सोना,
एक लम्बी गहरी नींद में,
ताकि देख सकूं सुन्दर सुखद स्वप्न....
-साधना 

Monday, October 14, 2013

कलियुगी दशहरा

Ravan


रावण कब मरता है,वो तो जीवन के हर पहलू में जीवित रहता है,
आज साँझ ढलने के बाद रावण फिर जलेगा, 
सांसों में धुआं व आँखों में राख गिरेगी और चारों ओर धुआं ही धुआं होगा,
कागज का पुतला जला और रंगीन आतिशबाजी का सब आनंद ले,
सब एक दूसरे को मुस्कराते हुए,
बुराई पर अच्छाई की विजय की बधाई देंगे ,
अधर्म पर धर्म की विजय, 
अन्याय पर न्याय की जय-जयकार की बातें होंगी । 
सहसा कहीं से किसी कुटिल मन में फिर पैदा होगा,
एक रावण जो काम क्रोध अहंकार दंभ से भरा होगा,
जो हर लेगा किसी राम की परिणीता स्त्री, किसी की दुलारी बेटी,
रावण को अगर सदा के लिए मारना है तो,
मारना होगा समाज में व्याप्त सभी बुराइयों को,
और साथ ही निर्माण करना होगा ऐसे वातावरण का, कानून का,
कि दुराचारी दुष्कर्म करने से पहले,
अपनी सजा के बारे में सोच कर ही काँप जाये,
नहीं तो इसी तरह पैदा होते रहेंगे रावण,
जिन्हें मारने के लिए इस कलियुग में न जाने कब राम जन्म लेंगे 

                                                                   -- साधना 

Thursday, October 10, 2013

माँ भ्रामरी देवी की कथा


पूर्व समय की बात है, अरुण नाम का एक दैत्य था। वह बड़ा नीच था, उसके मन में देवताओं को जीतने की इच्छा उत्पन्न हो गई। उसने कठोर तप किया, तब उसके शरीर से प्रचंड अग्नि निकली, जिससे सभी प्राणियों के मन में आतंक छा गया। उसकी  कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे वर मांगने को कहा। अरुण ने जब आँखे खोली, तो सामने ब्रह्माजी को पाया। उसने ब्रह्माजी से वर माँगा ''मैं कभी मरुँ नहीं '' ब्रह्माजी  ने समझाया जन्म लेने वाले का मरना निश्चित है, यही जीवन का सिद्धांत है। तुम कोई दूसरा वर मांग लो।

तब अरुण ने कहा -''प्रभो अच्छी बात है, फिर आप मुझे ऐसा वरदान दीजिये कि मैं न युद्ध में मरुँ, न किसी अस्त्र -शस्त्र से, न स्त्री-पुरुष से, न ही दो पैर, चार पैर वाले प्राणी मुझे मार सके और मुझे ऐसा बल दीजिये कि मैं समस्त देवताओं को जीत सकूँ। तब ब्रह्माजी तथास्तु कह कर ब्रह्मलोक को चले गए। दैत्य अरुण ने अपने बल से सभी लोकों पर विजय प्राप्त की और सभी को सताने लगा। समस्त देवता अरुण से व्यथित होकर उसे परास्त करने का विचार करने लगे। तभी आकाशवाणी हुई कि तुम सभी भगवती की आराधना करो, वे ही तुम्हारा कार्य सिद्ध करेंगी, साथ ही दैत्य अरुण को गायत्री जप से विरत करना होगा।

तब ब्रहस्पति जी ने मायाबीज का जप करके तपस्या पूर्ण की, जिससे उन्हें तेज और शक्ति पुनः प्राप्त हुई। तत्पश्चात वे दैत्य अरुण के पास जाकर बोले - जिन देवी की तुम उपासना करते हो, मैं भी उन्ही की उपासना करता हूँ। बल के अभिमान और देव माया से मोहित होकर अरुण कहने लगा - आज से मैं गायत्री की उपासना नहीं करूँगा और उसने तपस्या करना छोड़ दिया। गायत्री जप का त्याग करते ही अरुण निस्तेज हो गया। कुछ समय बीतने के बाद जगत का कल्याण करने वाली माँ भगवती जगदम्बा प्रगट हुई। उनके श्रीविग्रह से करोड़ों सूर्यों का प्रकाश फ़ैल रहा था, उनकी मुठ्ठी में अद्भुत भ्रमर भरे हुए थे। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की। देवी ने उन भ्रमरों को चारों और फैला दिया, उन सभी भ्रमरों ने जाकर राक्षसों की छाती छेद डाली। इस तरह ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई कि न युद्ध हुआ, न किसी की परस्पर बातचीत हुई और शक्तिशाली दानव नष्ट हो गए। इस प्रकार माँ भ्रामरी देवी का प्रादुर्भाव हुआ।
 
- धार्मिक ग्रंथों से प्रस्तुत

Saturday, October 5, 2013

शक्ति

Hat tala para Durga thakur

हे देवी माँ , तुम महाशक्ति हो,
इस विश्व की जननी और पालनहार भी तुम ही हो,
यह संसार एक रंगमंच है तुम उसकी रचयिता,
तुम्हारी मधुर मुस्कान में सम्पूर्ण विश्व डूब जाता है,
क्योंकि तुम सबकी आँखों पर मोह की पट्टी बाँध कर,
सबको कठपुतलियों सा कुशल नट की भाँति नचाती हो,
आत्मा परमात्मा को भूल मनुष्य इच्छाओं के समुद्र में डूब जाता है,
गर्त में डूबता जाता है और कभी सुखी नहीं हो पाता,
दुखी होकर भी सुखी होने का अभिनय करता है,
पर फिर भी जीवन का सबसे बड़ा सच तो यही है,
कि खुश हैं सिर्फ ये धरती, आकाश,
नदिया, गहरा समुन्दर और तपता सूरज,
क्योंकि ये सब ही सत्य हैं….
- साधना