Friday, November 30, 2012

गिलहरी

Indian Palm Squirrel Portrait
सुनहरी गुनगुनी धूप में एक नन्ही सी गिलहरी
नाज़ुक सी, नर्म सी
कभी मुंडेर पर इधर-उधर भागती
कभी तार, कभी बगीचे, कभी मैदानों मे
फुदक कर, कूद कर भाग जाती
कभी नीम की डाली पर कूदती-फाँदती
कभी हाथ जोड़े दाने खाती
इस दुनिया की परेशानियों से अंजान
नीम की डाली पर अपना नीड़ बनाती
सुबह से खोज में लग जाती
कभी रुई कभी कपड़ों की कतरन
तो कभी धागे ढूंढ-ढूंढ कर लाती
फिर कुछ दिनों बाद अपने नन्हें बच्चों के लिए
दूर-दूर से दाना ढूंढ लाती
दुनिया भर की मुसीबतों से
कभी बाज, कभी बिल्ली से बचाती
जीवन की विषम कठनाइयों से बिना डरे
एक नन्ही सी गिलहरी अपने जीवन को
बिना किसी तनाव के
सहज, सरल, सुंदर ढंग से बिताती
-साधना

Thursday, November 29, 2012

पारिजात के फूल...

Parijat
एक मीठी सी गंध से भर उठता था मन
जब पारिजात में सफ़ेद प्यारे से फूल लगते
छोटे-छोटे फूल जब हवा में इधर उधर उड़ते,
कभी-कभी धरती पे बिखर जाते
कभी तितलियों, मकड़ी, व नन्हें-नन्हें कीटों से घिर जाते
सूरज के डूबने पर निशा में अपनी छटा बिखराते
किसी निराश उदास मन को शांति पहुंचाते,
सूरज के आते ही शांत व उदार मन से झर जाते
सुबह भगवान के शीश पर गजरे बन सज जाते,
उसकी मीठी सी प्यारी सी सुगंध एक अनोखा एहसास जगाती
तब जिंदगी उमंग से भर जाती


- साधना

Friday, November 16, 2012

मुक्ति बन्धन

मेरे घर में एक सुंदर सुनहरा सा पिंजरा है  
उसमे एक प्यारा सा चिड़ियों का जोड़ा है
दोनों चिड़िया दिन भर फुदकती, झूलती, चहचहाती, 
अच्छा सा दाना-पानी खाती पीती और मस्ती में डूब जाती,
पिंजरे में अपने पंखों को फड़फड़ाती,
मुक्त होने की चाह में इधर-उधर पिंजरे से टकराती,
मैंने उन्हे बहुत समझाया, बाहर की दुनिया बहुत निर्मम है,
वहाँ न दाना है न पानी, चारों तरफ दुश्मन ही दुश्मन व परेशानियाँ है,
पर  जब भी मौका मिलता, मुक्त होने की चाह में,
पिंजरा खुलते ही फुर्र हो जाती...
मुक्त गगन में अपना अस्तित्व बनाने की चाह में उड़ जाती...

- साधना

Saturday, November 10, 2012

तनहाई ...

तन्हाइयों  में अक्सर सोचती हूँ
ये जीवन यूं ही गुजर गया,
 करने की बहुत चाह थी मगर कुछ न हो सका,
 वक्त का साया यूं ही गुजर गया,
 कहने को तो बहुत अपने है मगर,
 ये जीवन तन्हा गुज़र गया, 
जीवन में बहुत रंग थे मगर,
 वक़्त ने उन्हें स्याह अँधेरों में बदल दिया,
सारी तमन्नाएँ यूं ही खत्म हो गयी,
जीवन यूं ही टूट कर बिखर गया,
फिर भी आशाओं के सहारे ये जीवन चल रहा है,
कभी तो सुबह होगी ये मेरा मन कह रहा है...

- साधना

Thursday, November 8, 2012

डूब गया सूरज...

डूब गया सूरज, गूँजे कहीं बंसी व मादल के स्वर
दिन-भर सुनहरी पीली धूप, फैला सूरज चला गया,
तपती दोपहरी में, नीम तले पक्षियों ने कलरव का शोर किया,
दिन-भर खेतों में अलसाई धूप में वृक्ष खड़े रहे,
गलियाँ दिन-भर सुनसान रही, 
फूल भी संशय में डूबे अधखिले से चुप-चाप रहे,
ताल तलैयों में, घरों में सब अलसाए से रहे,
डूब गया सूरज साँझ हुई, शशि ने दूध सी धुली चाँदनी फैलाई,
डूब गया सूरज...

- साधना

जीवन

जीवन एक बहती हुई नदी के समान है
जिसमें कई बुलबुले उठते है, तैरते है,
फिर टूट जाते हैं, फिर उठते है फिर डूब जाते है
एक दिन इसी तरह टूटते व बिखरते हुए
अपने लक्ष्य पर पहुँच ही जाते है
मंज़िल को हासिल कर लेना ही जीवन का लक्ष्य है
वरना जीवन समंदर की गहराईयों में डूब जाते हैं

- साधना

Monday, November 5, 2012

सच

सच बोलना और सुनना पसंद है मुझे
पर सच बोलने से रिश्ते टूट जाते हैं
वेद पुराणों में पढ़ा व सुना है मैंने
सत्य ही जीवन है, सत्य ही जीवन का आधार है
पर आधुनिक जीवन मे तो सत्य ही परेशान है
झूठे व चापलूसों से भरा है यह जीवन
सच बोलने वाला तो सच में हैरान, परेशान है

 - साधना