Friday, May 31, 2013

उफ़ गर्मी!!

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जेठ की चटक चमचमाती, 
तेज धूप से सभी निढाल से हो जाते,
जब बादल का कोई छोटा-सा टुकड़ा,
आसमान पर छा जाता,
तो लगता किसी ने झीनी-सी चुनरिया लहरा दी हो,
तपन से बचाने के लिए,
पीली सरसों के खेतों में,
लहराती इठलाती फिरती गर्म हवाएँ,
अपना परचम फैलाती,
चुलबुल सी बुलबुल पेड़ों की घनी टहनियों,
पर अपने मीठे स्वर में,
अपना नया राग गुनगुनाती,
कबूतरों की टोली मैदानों में,
अपनी गुटर गु की धव्नि फैलाती,
सूर्य के अस्त होते ही,
सुवासित मंद-मंद पवन,
अपना स्पर्श करा सबके मन को,
राहत की सांस दिला,
शीतलता का अहसास कराती...
- साधना

Tuesday, May 28, 2013

तृष्णा (लोभ) से अधिक इच्छा नहीं करना चाहिए...

पूर्व काल की बात है, एक मुनि थे। उनके मन में धन की इच्छा जाग उठी। धन जमा करने के लिए वे तरह-तरह के प्रयत्न किया करते परंतु उनका हर प्रयत्न विफल हो जाता।
उनके पास का धन भी खत्म होने लगा था। उन्होनें सोचा जो थोड़ा-सा धन बचा है इससे दो बछड़े खरीद लिए जाए फिर खेती करके खूब धन कमाया जाए। उन्होनें ऐसा ही किया, बछड़े खरीद कर सोचा इन बछड़ो से जुताई का काम ले कर खूब अनाज पैदा कर के बहुत सारा धन कमाऊँगा।
फिर वे बछड़ो को परस्पर जोत कर (साथ में बांधकर) हल चलाने की शिक्षा देने के लिए घर से निकल पड़े। जब गाँव से बाहर निकले तो रास्ते के बीच में एक ऊँट रास्ता घेर कर बैठा था। दोनों बछड़े ऊँट को बीच में कर उसके ऊपर से निकलने लगे, किन्तु ज्यों ही उसकी गर्दन के पास पहुँचें तो ऊँट को बड़ी चुभन मालूम हुई।वह रोष में भरकर हड़बड़ा कर उठ खड़ा हो गया। दोनों बछड़े जो परस्पर बंधे हुए थे ऊँट के दोनों ओर लटक गए। बछड़ों की साँसे रुक गयी और वो मर गए। यह दृश्य मुनि अपनी आँखों के सामने देख रहे थे पर उनके वश में कुछ भी नहीं था।
अतः वे तृष्णा(लोभ) से मुख मोड़कर बोल पड़े- "मनुष्य कितना भी बुद्धिमान क्यूँ न हो पर जो उसके भाग्य में नही है, उसे वो किसी भी प्रयत्न् से प्राप्त नहीं कर सकता, हठपूर्वक किए गए पुरषार्थ से कुछ भी प्राप्त नहीं होता।"
(नीतिकथाओं से प्रस्तुत)
- साधना

Friday, May 24, 2013

प्राचीन इमारतें

Jahaz-Mahal at Mandu Fort













प्राचीन इमारतें खंडहर-सी नज़र आती,
सूरज के निकलते ही सुनहरी आभा वाली,
किरणों का प्रकाश पड़ते ही इमारतें फिर जीवंत हो उठती,
महलों के महराबों झरोखो से आती,
रोशनी व ताजी बयार को महसूस कर लगता,
अभी-अभी महलों के दालानों में राजा का दरबार सजा है,
कहीं से हँसी ठिठोली करती रानियाँ व,
राजकुमारियों की पायल की रुनझुन,
मंद-मंद हँसने खिलखिलाने की आवाज़ महसूस होती,
कहीं सैनिको की आवाजाही तो कहीं,
घोड़ों-हाथियों से सजी सेना का एहसास होता,
कभी ढ़ोल-नगाड़ो की आवाज़ आती,
कहीं घोड़े की टापों की आवाज़ सुनाई देती,
रात की मधुर चाँदनी में एक सुंदर सी,
नर्तकी का आसपास होने का एहसास होता,
घुंघुरुओ की मधुर आवाज व तबले, सारंगी,
शहनाई के स्वर सुनाई देते,
मन इन प्राचीन इमारतों के वैभवपूर्ण इतिहास,
की कल्पनाओं में इसी तरह खो जाता... 
- साधना

Tuesday, May 21, 2013

सोच...

Tiger Girl


एक छोटी-सी बच्ची थी। उसे रोज रात को सपने में शेर दिखाई देता था। धीरे-धीरे बच्ची के मन में डर बैठ गया। वह पूरे समय अनजाने डर से डरती ही रहती थी। उसके माता-पिता उसे एक मनोचिकित्सक के पास ले गए।
मनोचिकित्सक ने बच्ची से कई प्रश्न किए, फिर उसे प्यार से समझाया कि शेर तुम्हें सपने में परेशान करता है। बच्ची ने कहा- नहीं। मनोचिकित्सक ने समझाया कि शेर तुम्हें परेशान करने नहीं बल्कि तुमसे दोस्ती करने व तुम्हारा मनोरंजन करने के लिए तुम्हारे सपनों में आता है। क्या शेर ने तुम्हें कभी भी नुकसान पहुंचाया? बच्ची ने कहा- नहीं। बस एक सकारात्मक सोच ने उस बच्ची के जीवन को खुशियों से भर दिया, उसके मन से डर निकल गया।
हमें भी अपना हर पल सकारात्मक सोच के साथ बिताकर अपने जीवन की नकारात्मक सोच को खत्म कर देना चाहिए ताकि हम अपने जीवन को सरलता से जी सकें। हर दिन हमें एक अच्छी-सी सकारात्मक सोच के साथ दिन की शुरुआत करना चाहिए। 
- साधना

Saturday, May 18, 2013

संध्या (साँझ)

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धीरे-धीरे सूरज ढलने लगा,
शांत झील में कुछ नावें तैर रही थी,
तभी लगा सुंदर-सलोनी सी संध्या कुछ अलसाई सी,
थकी-सी, पहनकर सिंदूरी कुछ मटमैली सी,
चमकीली सी साड़ी उतर गयी शांत झील के शीतल जल में,
मैं भी शीतल जल में डूब अपनी थकान मिटाना चाहती थी,
पर ऐसा न हो सका क्योंकि मैं इस जग की थकान से परेशान थी,
संध्या रात भर डूबी रही शीतल जल में करती रही जल-क्रीड़ा करती रही,
सुबह-सुबह चिड़ियों के कलरव से,
ठंडे-ठंडे जल से अपने नयनों को धोकर लजाती,
बलखाती फिर अपनी सिंदूरी साड़ी की,
अलौकिक छटा को बिखराती झील के जल से निकली संध्या,
उज्ज्वल प्रकाश फैला इस सृष्टि को जगमगाने के लिए... 
- साधना

Thursday, May 16, 2013

द्रौपदी पांडवों की पत्नी क्यों हुई?

Ram and Sita - home altar


देवी भागवत के नवें स्कन्ध के 14वें अध्याय के अनुसार जब सीता-हरण का समय उपस्थित हुआ तो अग्निदेव ने भगवान श्रीराम से प्रार्थना की कि आप सीताजी को मुझमें स्थापित कर छायामयी सीता को अपने साथ रखिए।
फिर समय आने पर मैं सीताजी को आपको लौटा दूंगा। रावण की मृत्यु के पश्चात जब सीताजी कि अग्नि-परीक्षा हो रही थी, उस समय अग्नि-देव ने वास्तविक सीताजी को उपस्थित कर भगवान श्रीराम को सौंप दिया और छायासीता को श्रीराम व अग्निदेव ने पुष्कर क्षेत्र में जाकर तपस्या करने को कहा।
वही छाया सीता अगले जन्म में राजा द्रुपद के यहाँ यज्ञ-वेदी से द्रौपदी के रूप में प्रकट हुई। भगवान शिव की पूजा में तत्पर छाया सीता ने भगवान त्रिलोचन से प्रार्थना की थी कि मुझे पति प्रदान करें।
यही शब्द उनके मुख से पाँच बार निकले। भगवान महादेव परम रसिक है- उन्होनें प्रसन्न हो कर वर दिया कि तुम्हें पाँच पति मिलेंगे। इस तरह द्रोपदी पाँच पांडवों की पत्नी हुई।
- साधना

Monday, May 13, 2013

अक्षय तृतीया

Lord Vishnu

वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया या आखातीज कहते है। अक्षय का शाब्दिक अर्थ होता है जिसका कभी नाश न हो। स्थायी वही रह सकता है जो सर्वदा सत्य हो।
इसी दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। इस तिथि को भगवान बद्रीनाथ के पट भी खुलते है। आज के दिन ही साल भर में एक बार वृन्दावन में श्री बिहारीजी के चरणों के दर्शन होते है।
आखातीज एक सामाजिक पर्व भी है। इस दिन बिना मुहूर्त देखे सभी शुभ कार्य आरंभ किए जा सकते है। आज का दिन हमारे आत्म विश्लेषण करने का दिन है। हमें इस दिन स्वयं का अवलोकन और आत्मविवेचन करना चाहिए। हमें आज के दिन अहंकार, स्वार्थ, काम, क्रोध, लोभ और बुरे विचारों को छोड़कर सकारात्मक चिंतन करना चाहिए जिससे हमें शांति व दिव्य गुण मिल सके। 
इस दिन दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है। इस तिथि पर दही, चावल-दूध से बने व्यंजन, खरबूज, तरबूज और लड्डू का भोग लगाकर दान करने का विधान है। 
आज के दिन ही महात्मा परशुरामजी का जन्म हुआ था। वे भगवान विष्णु के अवतार है। रेणुका पुत्र परशुरामजी ब्राम्ह्ण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे। सहस्त्रार्जुन ने उनके पिताजी जमदग्नि का वध कर दिया था, जिससे क्रोध में आकर परशुरामजी ने पृथ्वी को दुष्ट क्षत्रिय राजाओं से मुक्त किया था। भगवान शिव के दिये हुए अमोघ अस्त्र परशु को धारण करने के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा था। 
- (धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार)

आभार...


मन आभार प्रकट करना चाहता है उन सभी आत्मीय मित्रों का जिनके सहयोग से आज “अनन्या its unique” के 4000+ page views पूरे हुए । आने वाले समय में आप सभी के सहयोग की अपेक्षा के साथ


- आपकी शुभेच्छु

- साधना

Sunday, May 12, 2013

मेरी माँ...

मेरी माँ

माँ तुम्हारा होना इस जीवन की बगिया का,
खुशियों से भरा होने का एहसास है,
तुम्हारे संस्कारों की सुगंध से सारी दिशाएँ महक उठती है,
चारों तरफ एक रंगीन-सा वातावरण हो जाता है,
माँ तुम मेरे हर दुख-सुख को समझती हो,
हम कहाँ गए, कहाँ चले-फिरे तुम्हें हर बात का पता होता है,
हजारों दुखों से घिरने पर भी,
मुझे दुख से मुक्ति का मार्ग दिखलाती हो,
माँ तुम्हारा होना इस प्रकृति के रंगों का,
ख़ुशबुओं का एक सुखद एहसास है। 

- साधना

प्यारी माँ...

Manon et Maman

माँ इस धरती पर मैं खाली हाथ ही आया था,
तुम्हारे ममता भरे आँचल में छुप कर,
मैंने सच्चा प्यार पाया था,
तुमसे महकी मेरे इस जीवन की बगिया,
जीवन के सारे रिश्ते तुमसे हैं,
इस जीवन की खुशी, चिंता, हल्ला-गुल्ला,
तनहाई तुम हो, नदिया, झरने, गहरा समंदर,
सावन-भादों, बसंती बयार तुम ही हो,
जीवन की हर सच्चाई तुम हो, 
तुम से ही है रिश्ते-नाते, मेरे जीवन की तुम्हीं विधाता,
तुमसे ही अस्तित्व है मेरा,
तुम हो मेरी प्यारी माँ... 
- साधना


Saturday, May 11, 2013

काश बचपन फिर लौट आता...

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जेठ की तपती दोपहर में विशाल नीम का वृक्ष स्थिर रहता,
सबको शीतल छाया व पवन देता,
जब भी गर्मी की छुट्टियाँ होती,
सारे बच्चे उस वृक्ष के नीचे जमा हो बतियाते,
नन्ही-नन्ही सारी लड़कियाँ उसकी छाया में खेलती,
कभी मम्मी-पापा की नकल,
तो कभी स्कूल टीचर की नकल कर अपनी दोपहर बिताती,
कभी आइस-क्रीम वाले की, कभी गन्ने के रस वाले की,
राह ताकती नज़र आती,
उन बच्चियों की प्यारी सी बातें, रस्सी कूदना,
नीम की डाली पर रस्सी बांध झूला झूलना,
देख मन फिर से छोटी-सी बच्ची बन जाने को करता,
कभी चिड़ियों की चहचहाहट, गिलहरी का भागना,
कोयल का कुहु-कुहु करना मन को भा जाता,
बस मन में यही विचार आता कि काश बचपन फिर लौट आता... 
- साधना

Monday, May 6, 2013

विनती

Krishna-I

कान्हा,
मैं जानती हूँ कभी किसी दिन मुझे इस संसार से
विदा होना होगा सूर्य अस्त हो रहा होगा,
पंछी अपने घरोंदों में लौट रहे होंगे और,
मैं अंधेरों में डूब जाऊँगी
तुमसे सिर्फ इतनी विनती है कि
संसार से जाने के पहले मैं अपने भाव तुम्हें,
समर्पित कर सकूँ, तुम्हारे दर्शन के लिए,
दीप जला सकूँ और एक पुष्प हार बनाकर,
तुम्हें अर्पित कर सकूँ, ताकि मेरा जीवन,
सफल हो जाएँ...
- साधना

Sunday, May 5, 2013

अधिक तृष्णा(इच्छा) नहीं करनी चाहिए

Jackal

किसी जंगल में एक भील रहता था। वह बड़ा साहसी और वीर था। वह रोजाना जंगली-जंतुओं का शिकार करके अपने परिवार का पेट भरता था। एक दिन उसे जंगल में एक विशाल सूअर दिखाई दिया। सूअर को देख कर भील ने अपने कान तक धनुष खींच कर उस सूअर पर बाण चलाया। बाण की चोट से सूअर तिलमिला उठा और उसने भील पर हमला कर उसके प्राण ले लिए।
इस प्रकार शिकार और शिकारी दोनों की मर्त्यु हो गई। उसी समय एक भूखा-प्यासा सियार वहाँ आया। सूअर और भील दोनों को मरा हुआ देख कर वह मन ही मन बहुत खुश हुआ और सोचने लगा- मेरी किस्मत बहुत अच्छी है जो मुझे इतना अच्छा भोजन मिला।
इस भोजन का मुझे धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिए, जिससे ये बहुत समय तक मेरे काम आ सके। ऐसा सोचकर वह धनुष की डोरी को ही खाने लगा। थोड़ी देर में धनुष की डोरी टूट गई। धनुष टूट कर सियार के मस्तक पर टकराया और सियार के मस्तक को फोड़ कर बाहर निकल गया। अधिक लालच के कारण सियार की पीड़ा-दायक मृत्यु हो गई इसलिए नीति कहती है अधिक लालच नहीं करना चाहिए। 
                                                               - पंचतंत्र की कथा से प्रस्तुत

Wednesday, May 1, 2013

बीत गया बचपन...

Hand-in-hand into the sunset
बचपन में हर पल प्यार मिला, दुलार मिला अपनों का,
फुर्र-फुर्र उड़ते पंछी-सा बीत गया बचपन,
बचपन के जाते ही जीवन कभी-इधर, कभी-उधर डगमगाने लगा,
सीमित होने लगे पल, दुख-सुख लगे घेरने,
रोक-टोक लगने लगी हर पल,
ये करो-ये ना करो की आवाजें आने लगी,
मन बैचेन होने लगा छटपटाने लगा,
फिर कहीं से स्नेह से भरे बोल सुन बैचेनी खत्म हुई,
जीवन नई तरंगों से भर उठा,
मन आभार प्रकट करने लगा उन स्नेह से भरे शब्दों का,
यदि न मिल पाता स्नेहपूर्ण साथ,
तो जीवन नीरस होकर अतृप्त सा रह जाता...
- साधना