Wednesday, February 26, 2014

महाशिवरात्रि -महोत्सव















        शिवरात्रि का अर्थ है वह रात्रि जो शिव को अतिप्रिय हो, फ़ागुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है। भगवन शिव की पूजा, जागरण और शिवाभिषेक इस व्रत की विशेषता है। चतुर्दशी के तिथि में चन्द्रमा, सूर्य के समीप रहता है। इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। अतः इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीवन में अभीष्ट फल प्राप्त होता है।

भगवान शिव संहार और तमोगुण के देवता है। रात्रि संहार काल की प्रतीक है, उसका प्रवेश होते ही हमारी दैनिक क्रियाओं का अन्त हो जाता है और संपूर्ण विश्व निंद्रा में लीन हो जाता है।

शिवरात्रि का कृष्ण पक्ष में होना साभिप्राय ही है। शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा सबल होता है कृष्ण पक्ष में क्षीण। चन्द्रमा के सबल होने पर संसार के सभी रसवान पदार्थों में वृद्धि होती है और क्षय के साथ क्षीणता आती है। सूर्य कि शक्ति से तामसी शक्तियाँ अपना प्रभाव नहीं दिखा पाती हैं, किन्तु चतुर्दशी की अंधकार से भरी रात्रि में वे अपना प्रभाव दिखाने लगती हैं। सभी तामसी वृत्ति के अधिष्ठाता भगवान शिव हैं, इन्हीं तामसी वृत्तियों के प्रभाव को नष्ट करने के लिए चतुर्दशी को शिवाराधना की जाती है। अध्यात्मिक कार्यों में उपवास करना जरुरी माना  गया है। उपवास से ही मन पर नियंत्रण रख कर रात्री जागरण किया जाता है और ॐ नमः शिवाय का जाप किया जाता है।

भगवान शिव अर्धनारीश्वर होकर भी काम विजेता है, गृहस्थ होते हुए भी परम विरक्त है, हलाहल विष-पान के कारण नीलकंठ हो कर भी विष से अलिप्त है, उग्र होते हुए भी सौम्य है, अकिंचन होते हुए भी सर्वेशवर है। भयंकर विषधर  नाग और  सौम्य चंद्रमा उनके आभूषण है ,मस्तक में प्रलयकालीन अग्नि और सिर पर गंगाधारा उनका अनुपम श्रृंगार है। ये सभी विरोधी भाव हमें विलक्षण समन्वय की  शिक्षा देते हैं। इससे विश्व को सह -अस्तित्व अपनाने की शिक्षा मिलती है।

अतः हमें शिवरात्री के महापर्व को बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ समारोहपूर्वक मनाना चाहिए।
- धार्मिक ग्रंथों से प्रस्तुत

Friday, February 21, 2014

छाया बसंत
















आया बसंत, छाया बसंत,
गुनगुनाया निसर्ग
धरती ने ओढ़ी चुनर नई,
कहीं पीली कहीं चटक हरी,
बुलबुल चहकी कोयल कूकी,
कलियों ने घूँघट के पट खोले,
भौंरा हो मदमस्त, गुनगुनाता फिरता,
कभी कुंद तो कभी गुलाब का रस पीता
नन्ही तितली पंख पसारे उड़ती फिरती,
कभी लाल नीले पीले फूलों को तकती
फसलें हवा के झोंकों से,
लरज -लरज लहराती
चटकीली सोने सी चमचमाती धूप,
मन में उत्साह-उमंग जगाती
गुदगुदा जाता हर कवि मन को बसंत,
हर प्रेमी के मन में आस जगाता
प्रस्फुटित हो जाते सुर सारे,
प्रकृति स्वयं राग बसंत गुनगुनाती
आया बसंत छाया बसंत...
- साधना

Monday, February 17, 2014

जीवन की सफलता






















जीवन की सफलताओं का श्रेय हमेशा सही निर्णय लेने वालों को प्राप्त होता है। हर व्यक्ति एक सफल व कामयाब जीवन जीना चाहता है। सही निर्णय लेने कि क्षमता हर व्यक्ति में नहीं होती, पर हम छोटी-छोटी गलतियाँ जीवन में कई बार करते रहते है, ठोकरें खाते है ,कई बार गिरते है फिर सम्हलते है। इस तरह अपनी की हुई गलतियों से सबक सीख कर हम अपने जीवन को जीते हैं। अपनी ही गलतियों की  नींव पर सफल जीवन की इमारत का निर्माण करते है। इन्हीं  की हुई गलतियों से मिला सबक हमारे जीवन का अनुभव व जमा पूंजी माना जाता है। जीवन में जब भी कठिनाइयों का दौर आता है तब हो चुके अनुभवों के आधार पर हम सही निर्णय ले पाते हैं। 

अतः हमें जीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों का सूक्ष्मता से निरीक्षण करते हुए जीवन को सफलता की राह पर अग्रसर करते हुए अपना जीवन सफल बनाना चाहिए।
- साधना

Saturday, February 8, 2014

नन्ही चिड़िया














एक काली, चमकीली छोटी सी, चुनमुन चिड़िया
कभी पत्तों पर गिरी पानी की बूंदों पर फिसलती
कभी फूलों में चोंच डाल उनका रस पीती
फिर हौले-हौले पारिजात के पत्तों को ध्यान से देखती
बड़ी मेहनत से कहीं से धागे, नारियल के रेशे लेकर आती
धीरे-धीरे बुनती अपने नन्हें बच्चों के लिए घरौंदा
रुई के नर्म बिछौनों पर देती अंडे
और इंतज़ार करती नाज़ुक परों से ढंके अपने बच्चों का
फिर उनके लिए चुन-चुन के लाती दाना-पानी
उन्हे हर विषम परिस्थिति में उड़ना सिखाती
इतनी छोटी सी होने पर भी
अपना माँ होने का हर कर्तव्य निभाती
इस निर्दयी संसार में रहकर उन्हे मुक्त गगन में
निर्भय होकर जीना सिखाती....
- साधना