Tuesday, December 20, 2016

नंगे पाँव ...

नंगे पाँव चलना अब भूल चुका इंसान,
नन्हे से पैरों ने जब डगमग हो रखा था पहला कदम,
घर-आँगन में गाँवो की गलियों, चौबारों, पगडंडियों में,
लटपट हो दौड़ा था बचपन, नर्म मुलायम दूब पर हुआ था,
मखमली कालीन का एहसास, 
पैरों में चुभती रेत, कंकरीले पत्थर कराते थे,
जीवन में ऊँच-नीच का एहसास,
अब हर समय जूते-चप्पल पहन भाव-विहीन हो मानव,
कर नहीं पता जीवन की सत्यता का एहसास

-साधना 'सहज'

Friday, October 14, 2016

हरसिंगार के फूल...




भोर का सूरज निकलने से पहले
 मैं कुछ जल्दबाज़ी में हूँ,
मैं चुन लेना चाहती हूँ पेड़ पर लगे
हरसिंगार के सिन्दूरी आभा से भरे महकते फूल 

बिखरकर हवा के झोंकों से उड़कर 
धरती पर फैलने से पहले,
स्मृतियों को भरना चाहती हूँ,
हरसिंगार के फूलों की भीनी-भीनी महक से सदा के लिए... 

- साधना सहज

Friday, September 2, 2016

मेरे पापा

मेरे पापा की स्मृति में... 
पापा के साथ बिताये हर पल को याद कर,
मन अतीत की यादों में डूब जाता,
याद आता हर वो लम्हा,
जब हमारी हर ख़ुशी के लिए अपने आप को भूल,
हम पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार हो जाते थे पापा,
कठिन परिस्थितियों में भी मुस्कुराकर हौसला बढ़ाते थे,
पर तब हम समझ नहीं पाते थे उनके अंतर्मन की बातें,
छोटी-छोटी उपलब्धियों पर भी,
पीठ थपथपा कर आगे बढ़ने का देते थे आशीर्वाद,
पर आज जब भी कुछ लिखती हूँ,
मन मसोस कर रह जाती हूँ,
काश मेरी छोटी-छोटी रचनाओं को पढ़ पाते मेरे पापा 

-- साधना सहज 

Friday, August 12, 2016

सुबह होते ही...


सुबह होते ही सड़कों पर कामवाली बाइयों की आवाजाही नज़र आती,
उनकी सुबह ही बर्तन साफ़ करने व झाड़ू पोंछे से होती,
सड़क पर भी वे सोचती-विचारती सी नज़र आती,
उन्हें हर पल जल्दबाजी होती,
झटपट सारा काम पूरा कर घर पहुँचती,
लेकिन घर पहुँचने पर वही शराबी पति से झिकझिक, 
टूटी खटिया, रोते बीमार बच्चे, 
झोपड़ी से रिसता पानी नज़र आता,
दिनभर की परेशानियों से तन-मन से थक उदास हो जाती,
रात को सोते वक्त ही महसूस कर पाती,
वह अपनी सांसों का स्पंदन और जीवित होने का अहसास...

-- साधना

Friday, May 20, 2016

सिंहस्थ कुंभ महापर्व



दुनिया के मानचित्र में एक निश्चित स्थान पर,
जहाँ से गुज़रती कर्क रेखा पर बसा एक शांत शहर, 
जो इस वक़्त महाकाल की नगरी के 
साथ-साथ मायानगरी सा नज़र आता।
चारों और आस्था, भक्ति का अलौकिक दृश्य नज़र आता,
क्षिप्रा नर्मदा के पावन संगम के कारण 
और भी पवित्रता का एहसास दिलाता।
चारों और फहराती रंग-बिरंगी ध्वजाएँ,
महाकाल के मंदिर का स्वर्ण मंडित कलश,
और पताकाओं को छूती सूरज की किरणों से जगमग सा नज़र आता।
कही जलते कंडों के बीच धुनी रमाते साधु,
शंख बजाते भक्त, कभी त्रिशूल, कभी डमरू,
हर हर महादेव की आवाज़ों से गूंजते घाट, 
हर ओर देशी-विदेशी भक्तों का ताँता नज़र आता।
शाही स्नान पर महामंडित गुरुओ, नागा साधुओं का शाही स्नान,
शाही जुलूसों का वैभव अपनी अनुपम छटा बिखेरता,
तपती धुप में आस्था से भरे श्रद्धालु डुबकियां लगाते नज़र आते।
सांझ होते ही अनुपम विद्युत साज-सज्जा से 
दमकते घाट, मंदिर, आश्रम और शहर निराला नज़र आता।
आकाश चाँद-सितारों से भर रात्रि के आने का एहसास दिलाता,
पर लगता है मानो शहर सोना ही भूल गया है,
क्योंकि हर श्रद्धालु अमृतमयी कुंड में डूबकर
अमृतमयी हो जाना चाहता हो 

- साधना 'सहज'

Thursday, April 7, 2016

बेचैन मन...

व्यस्त जीवन के शोर से मन हर पल बेचैन है,
नींद भी आती नहीं, चेतना भी थक-सी जाती,
मन छटपटाता, अँधेरों में रोशनी नज़र आती नहीं,
तपती गर्म रेत-सा मन तपता रहता, 
मृगतृष्णा में भटकता रहता,
पर बारिश की ठंडी फुहारे नज़र आती नहीं,
ठंडी-ठंडी पवन के इंतज़ार में मन हर पल भटकता,
नर्म गीली मिट्टी पर कदमों के निशान,
बनते ही हर पल बिखरे से नज़र आते,
उलझनों से निकलने की चाह में,
मन और भी उलझता जाता... 
- साधना 'सहज' 

Sunday, February 7, 2016

बेटियां...

नील गगन में रोशनी फ़ैलाने वाली,
सुन्दर शीतल चाँद-सी होती है बेटियां,
टिम-टिम करते जगमग सितारों से,
मिलने वाले निर्मल उजास-सी होती है बेटियां,
सूरज की गुनगुनी धूप का एहसास दिला,
रोशनी से मन को भर देती है बेटियां,
मंद-मंद सुवासित पवन की तरह,
हौले-हौले प्रेम से सबके जीवन को भर देती है बेटियाँ,
पूर्वजों के आशीर्वाद से मिलती है बेटियां,
बेटियों बिन जीवन घर आँगन सब सून है,
हर घर का सुखद एहसास है बेटियां...
- साधना 

Friday, January 1, 2016

फिर एक नया साल....

सूरज की परिक्रमा पूरी कर,
365 दिनों में फिर लौट आई पृथ्वी,
लेकर एक नयी उमंग,
उत्साह को साथ लेकर एक नया साल,
नयी अनुभूति, नए अनुभव, 
नयी आकांक्षाओं के साथ,
वही सूरज, वही चाँद होगा,
पर जश्न ज़ोरदार होगा,
नए कैलेंडर के साथ कुछ 
नयी उम्मीदों का जन्म होगा,
असहिष्णुता को छोड़ 
सहिष्णुता का बोलबाला होगा,
 हर दिन सूरज निकले,
अमन-चैन, उम्मीदों का उजाला लेकर,
हम सब करे उसका स्वागत 
नए जोश व जिंदादिली के साथ....
-- साधना