Monday, March 25, 2013

होली

Color Washed Grainy Seamless Retro Patterns 4
निकली मस्तों की टोली
होली है भई होली है
शहर गाँव में शोर मचाते, गलियों और चौराहों पर
निकली मस्तों की टोली है
होली है भई होली है
उमंग उल्लास से भरे रंग हैं
चौराहों पर होलिका दहन है
भंग, ठंडाई की तरंग मे डूबे सब हमजोली हैं
गुझिया, लड्डू, पूरणपोली खाने में सब मस्त हैं
फागुन के रंगों मे रंगा मौसम भी अलमस्त है
कोयल कुहकी, बुलबुल चहकी
अलसी गेंहू की क्यारी भी रंगों मे डूबी
महुआ महका, आम मंजरियों से भौरें भी मदमस्त हैं
तरह-तरह के रंग हैं बिखरे, सारे के सारे मस्त हैं
जगह-जगह पर शोर हुआ, होली है भई होली है

- साधना

Saturday, March 23, 2013

गर्मी की छुट्टियाँ

Children out of scholol
कुछ समय पहले गर्मी का मौसम आते ही स्कूल की छुट्टियाँ हो जाती,
घर-आँगन भर उठते बच्चों की शरारत से,
गलियों में आम, इमली, कबीट व गन्ना गंडेरी 
बेचनेवालों की आवाजाही नज़र आती,
साँझ होते ही बच्चे नदी-पहाड़, पकड़म-पाटी खेलते नज़र आते,
घर के सामने तांगा या रिक्शा आकर रुकता,
कभी मौसी, कभी बुआ-फूफा, कभी चाची-मामी के आने की खबर आती,
घर का हर कोना खुशी और उल्लास से भर उठता,
दोपहर में सभी महिलाएं हँसती-बतियाती और
पापड़, बड़ी, अचार बनाती नज़र आती। 
रात में चारपाई बिछा तारों को निहारते हुए,
अपने सुख-दुख के किस्से सुनाती।
पर इस आधुनिक जीवन ने घर-आँगन की खुशियों को छीन लिया,
अब आम, इमली की जगह वीडियो-गेम, टी.वी. व आइसक्रीम है। 
घर सूने हो चले है, अपनापन भी नहीं रहा। 
अब किसी के आने की आहट सुनाई नहीं देती। 
अब सिर्फ सूने मन व सूने घर नज़र आते है। 
- साधना 

Thursday, March 21, 2013

पतझड़

Autumn in Novosibirsk
पेड़ों के पत्ते झड़ गए पतझड़ का आव्हान हुआ,
सूरज की तपती किरणों ने गर्मी का आव्हान किया,
पशु-पक्षी सब घबरा उठे, ताल-तलैया लगे सूखने,
बढ़ती गर्मी की तपन ने पंखों व ए.सी. का आव्हान किया,
सारा दिन भट्टी-सा तपता, लू ने सभी को परेशान किया,
सब डरते-डराते घर में छुपते, हर कोई हैरान हुआ,
सांझ के ढलते ही छत पर पहुँच हर व्यक्ति ने,
चंद्रमा की शीतल किरणों व मंद पवन का आव्हान किया।
पेड़ों के पत्ते झड़ गए...
- साधना
   

Monday, March 18, 2013

पलाश के फूल

गर्मी का मौसम आते ही,
खिल उठते है चटख रंग के पलाश के फूल,
मन और आँखें तृप्त हो जाती है फूलों को देखकर,
जीवन खुशी से सराबोर हो जाता,
हर पल उत्साह के साथ बासन्ती खुशियाँ मनाता,
भौरों की गुनगुनाहट और चिड़ियों की चहचहाहट को देख वृक्ष भी लहराता,
झूम-झूम कर हर आने-जाने वाले पंछी से बतियाता,
पर जब भी अपनी शाखों को पर्ण-विहीन पाता,
कुछ उदास सा हो जाता,
पर अपने आप को समझता कि खुशी के साथ गम,
मिलन के साथ जुदाई जुड़ी हुई है।
तभी एक नया पंछी डाल पर बैठ कर चहचहाता
और पलाश अपना गम भूल जाता...
- साधना

Sunday, March 17, 2013

मूर्ख को उपदेश देना अहितकर होता है

Monkeys in a Lewes Fleamarket

किसी जंगल में एक विशाल शमी का वृक्ष था। उसकी शाखा पर गोरैया का जोड़ा घोंसला बनाकर रहता था। एक दिन आकाश काले बादलों से घिरा था और वर्षा भी हो रही थी। थोड़ी देर में बारिश तेज़ हो गयी और ठंडी हवाएँ चलने लगी। इतने में एक बंदर ठंड से दाँत कटकटाते हुए उस वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया। गोरैया ने बंदर से कहा- तुम दिखते तो मानव जैसे हो, एक घर क्यों नहीं बना लेते, जिससे हर मौसम में तुम्हारी रक्षा हो। 

बंदर को गुस्सा आ गया और वह बोला- तू मेरा मज़ाक उड़ाती है, चुप क्यों नहीं रहती। गोरैया फिर बोली- अगर मकान नहीं बना सकते तो कोई गुफा ही ढूंढ लो ताकि कष्ट से बच सको। इतना सुनते ही बंदर को गुस्सा आ गया और बोला- इतनी छोटी होकर तू मेरा मज़ाक उड़ा रही है। जिस घोंसले पर तुझे अभिमान है, मैं उसे अभी उजाड़ देता हूँ। यह कहकर उसने घोंसले के टुकड़े-टुकड़े कर दिये।

बेचारी गोरैया तो बंदर को नेक सलाह दे रही थी पर उसे क्या मालूम था कि मूर्खों को सलाह देने का परिणाम भयंकर होता हैं। इसलिए मूर्खों को उपदेश नहीं देना चाहिए क्योंकि उपदेश उनके क्रोध को बढ़ता है और वो गुस्से के कारण ये नहीं समझते कि उपदेश उनकी भलाई के लिए हैं।    
- पंचतंत्र की कथा से प्रस्तुत

Friday, March 15, 2013

मानव या दानव

Good and evil

अरे मानव! तू क्यों हर पल दानव बनता जा रहा हैं,
ईश्वर ने तुझे बहुत सोच समझकर प्यार और विश्वास के साथ बनाया था,
अपनी अनुपम कलाकृति समझ वह भी मन ही मन मुस्कुराया था,
पर तूने उस ईश्वर के अरमानों पर पानी फेर दिया,
प्यार, विश्वास, भाईचारे को छोड़ तू हर पल,
दानव बन कहीं आगजनी, विस्फोट व बलात्कार,
जैसे महाघोर पापों में लिप्त हो गया
इंसानियत को भूल वहशी, पापी, दरिंदा बन गया
अरे मानव! तू अपने गुनाहों को छोड़ फिर से इंसान बनने की कोशिश कर,
वरना वह दिन दूर नहीं जब प्रलय की आँधी आएगी,
और तेरा नामोनिशां मिटा चली जाएगी। 
- साधना 

Friday, March 8, 2013

नारी शक्ति

Devi Durga

नारी तुम सदा वंदनीय हो!!
तुम्हारा पूरा जीवन एक कठिन तपस्या हैं,
वेदों के अनुसार तुम्हें पूजा स्थल में बैठ यज्ञ करने
की कोई ज़रूरत नहीं क्योंकि तुम अपने परिवार व समाज की
हर ज़रूरत को पूरा करती हो।
अन्नपूर्णा बन सबकी भोजन क्षुधा शांत करती,
कभी बहन बन भाई की लंबी उम्र व शांतिपूर्ण जीवन की दुआ मांगती,
कभी प्रेयसी बन अपने प्रियतम को रीझाती,
कभी सुशील बहू बन अपने सास-ससुर की सेवा कर अनेकों आशीष पाती,
संतानों को जन्म दे वंश को आगे बढ़ाती,
बच्चों पर अपना प्यार न्योछावर कर
उन्हें प्रेम व सद्व्यवहार करना सिखाती,
तुम्हारे हर रूप के आगे देवता भी नतमस्तक हैं,
तुम्हारी व्यापकता में खो जाना चाहते हैं,
इसलिए हे नारी! तुम्हें अपनी छवि को हमेशा
साफ-सुथरा व उज्जवल बनाए रखना होगा,
ताकि तुम सदा वंदनीय बनी रहो।
- साधना


नारी तुम शक्ति हो,
घर में हो तो गृहलक्ष्मी, धर्मपत्नी कहलाती हो
संतान की जननी होने से माँ कहलाती हो
कहीं पुत्री, कहीं बहू,
अनंत रूपों को धारण कर
तुम परिवार को, इस संसार को चलाती हो
माँ स्वरूप में अपने बच्चों के
हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की कामना करती हो
सुख-दुख मे उनके साथ रहती हो सदा
संस्कार देकर अच्छे उन्हे सदाचार सिखाती हो
परिवार पर कोई कष्ट न आए इसलिए
पूजा, प्रार्थना, व्रत, उपवास कर
हर अनिष्ट को दूर रखना चाहती हो
तन से भले ही थक जाओ
पर मन से सशक्त हो
परिवार की हर ज़रूरत पूरी करती हो
इस सब पर भी इस कलयुग में
अपयश और अपमान ही तुम्हारे हिस्से आता है
कहने को सबकुछ तुम्हारा होता है
फिर भी तुम सदा खाली हाथ रहती हो
इस समाज से प्रार्थना है मेरी
वे नारी का अपमान ना करें
क्योंकि नारी तुम ही तो
दुर्गा, राधा, लक्ष्मी का रूप हो

साधना

Wednesday, March 6, 2013

माँ















माँ तुम्हारे सामने युग-युग के मस्तक झुक जाते,
तुम्हारी ममता के आगे संसार की हर गति रुक जाती,
तुम्हारी व्यापकता में ईश्वर स्वयं डूबना चाहते,
तुम्हारी हर मुस्कान पर सब न्योछावर हो जाते,
माँ तुम्हारी रचना में प्रभु का सारा वैभव चुक जाता,
माँ तुम्हारी ममता की मिठास में डूब मन स्थिर हो जाता,
तुम्हारे आँचल की छाँव में मन सुकून से भर जाता,
तुम्हारे हाथों से भोजन का निवाला पा मन अमृत-सा तृप्त हो जाता,
तुम्हारा विश्वास मेरे अन्तर्मन के विश्वास को प्रबल बनाता,
माँ मैं तुम्हारे हर रूप का पूजक हूँ,
हर हाल में युग-युग तक मैं तुम्हारी ही पूजा करना चाहता हूँ। 
- साधना

Saturday, March 2, 2013

भिक्षुक

The begger
दरवाजे पर आहट हुई लगा कोई आया,
देखा एक बुजुर्ग इंसान हाथ में कटोरा ले पुकार रहा था,
पेट की अग्नि को शांत करने के लिए कुछ मांग रहा था,
मन बेचैन हो उठा, लगा मेरे पास देने को
आंसुओं के अलावा कुछ भी न था,
जीवन एक भिक्षु की तरह ही गुजर गया,
हमेशा कुछ न कुछ प्रभु से और अपनों से मांगते ही रहे,
माँगते-माँगते ही जीवन गुज़र गया,
जीवन भर फिर भी संतुष्ट न हो सके,
लगा हम दोनों के हालात एक जैसे है,
पर दिल की बातें किसी से कह न सके
और जीवन यूं ही गुज़र गया...   
- साधना