Saturday, October 27, 2012

बचपन

रात के घनेरे सायों में मन यादों में खो जाता है
बचपन के सुहाने पल याद आते हैं
अपने पूर्वजों की स्मृति व प्यार में डूब जाता है
हर पल लगता है काश, बचपन फिर लौट आता
तितलियों के पीछे फिर भागना, आकाश नीम के तले
फूलों को चुनना, वेणी बनाना
सखियों के साथ दौड़ना भागना
अपने भाई बहनों के साथ उठना दौड़ना भागना
गर्मी की गर्म रातों में छत पर तारे गिनना
सर्द रातों में दादा-दादी से कथाएँ सुनना
बारिश में हमउम्र दोस्तों के साथ
पानी में नाव चलाना, भीगना, मस्ती करना
सब कुछ एक स्वप्न की तरह, आँखों मे तैर जाता है
तब मन सोचता है, काश! बचपन फिर लौट आता

 - साधना

Sunday, October 21, 2012

मन

मन डूबता है, उतराता है, भागता है
सोचता है, फिर किसी झंझावात में
उलझ जाता है, कभी कुछ करना चाहता है
कभी फिर डूब जाता है
उलझनों को जितना सुलझाना चाहो
उतना ही ज्यादा उलझता जाता है
आशा की किरण नज़र आते ही
आशाओं की डोर टूट जाती है
मन, डूबते सूरज को देखकर कभी
डूब जाता है, और कभी नए सूरज के
उगने की आस में खुश हो जाता है

साधना