Sunday, May 25, 2014

जेठ की तपती दोपहर...

















जेठ की तपती दोपहर में सूरज की किरणें,
प्रचंड रूप धर झुलसा रही जन -जीवन को,
गर्म हवाएँ उड़ा रही धूल और बवंडर,
पृथ्वी के गर्भ में छुपी अनंत ऊष्मा परिणीत हो,
गुलमोहर और अमलतास के चटख रंगो से,
कर रही प्रकृति का मनभावन श्रृंगार।
पशु -पक्षी हाँफ रहे ,नन्ही चिरैया कांप रही
न दाना न पानी दिखता, न नदी न तालाब,
सारा दिन घर भट्टी सा तपता ,कोई न घर के बाहर दिखता
दिन भर की तपन के बाद रातें भी बैचैन करती
पर धीरे-धीरे चन्द्रमा की शीतल किरणें,
दिलाती तपते तन-मन को शीतलता का अहसास...
- साधना 

Sunday, May 11, 2014

माँ प्यार तुम्हारा

Manon et Maman

माँ प्यार तुम्हारा निर्मल जलधारा ,कलकल कर बहता जाता 
मेरे जीवन की सारी नीरवता और विषाद को अपने 
संग ले कलकल बहता जाता 
सावन की मस्त फुहारों सा मेरे तन-मन को भिगो जाता 
माँ प्यार तुम्हारा मधुर-मधुर 
तपती धूप में ठंडक पहुँचता 
माँ प्यार तुम्हारा चंदा की निर्मल चाँदनी सा 
थके हुए मन को शांति का एहसास दिलाता 
माँ प्यार तुम्हारा शक्ति बन जीवित होने का एहसास 
दिला सत्य की राह पर चलना सिखलाता 

- साधना 

Thursday, May 1, 2014

कारीगरी के शहंशाह


जब भी सुबह-सुबह उस रास्ते से गुजरती,
बहुत सारे श्रमिक शेड के आसपास नज़र आते,
श्रमिकों के झुण्ड, जो काम मिलने की आशा लिए,
जमा हो जाते गलियों, चौराहों पर,
कभी बतियाते, कभी गुमसुम से नज़र आते। 
मन ही मन सोचते ये गलियाँ चौराहे सदा रौशन रहें, 
ताकि उनका जीवन व रोजी-रोटी चलती रहे। 
वे हर तरह के काम को करने को आतुर होते,
किन्तु ऐसे ही लोगों में कुछ लोग होते बहुत ही हुनरमंद,
क्योंकि उनकी मेहनत छैनी हथोड़ी करनी के भरोसे होती है,
गज़ब की कारीगरी और वे ही होते हैं, 
अनोखी कारीगरी के शहंशाह!!
                                       - साधना