Sunday, September 22, 2013

ममता की छांव

Tree hugs!

माँ, तुमने स्वप्निल आँखों से,
अपने नर्म नाज़ुक हाथों से, 
एक छोटा सा बीज रोपा था धरती की गहराई में,
अब स्नेह के जल को पाकर,
वह धीरे-धीरे घुटनों की ऊँचाई तक बड़ा हो,
धीरे-धीरे विशाल आकार लेने लगा है,
जिसके हर पत्ते फूल-फल से,
तुम्हारे हर पल आसपास होने का अहसास होता है,
उसके फूलों में तुम्हारे निर्मल प्यार की खुशबू है,
जो मंद मंद पवन को सुवासित कर चारों ओर महकती है,
फलों में तुम्हारे प्यार की मिठास व निश्छल प्रेम का अहसास है,
जो मुझे भर देता है आत्म विश्वास से,
उसकी घनी छाया में महसूस होता है,
तुम्हारी गोद में सिर रखकर सोने सा सुकून व सभी आत्मीय जनों का आशीर्वाद....
- साधना

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