Photo taken from: Dhinakaran Gajavarathan's Flickr Photostream जीवन मे हर पल गमों को भूलने के लिए भटकते रहे खुशियाँ ढूंढते रहे पर खुशियाँ नहीं मिली परेशान होकर तब पलकें मूंदकर हम बैठ गए वीराने में जब चिड़ियों के कलरव से हम जागे खुशियाँ थी चारों तरफ सूरज की किरणों में, चंद्रमा की चाँदनी में, ठंडी-ठंडी बयार में, कोयल की कूक में, ठंडे शीतल जल में, मयूर के कलात्मक नृत्य में, चारों तरफ आनंद ही आनंद था, और हर कोई अपनी-अपनी तकलीफ़ों को भुला कर तरह-तरह से खुशियाँ बिखेर, खुश हो रहा था...
रंग उड़ाती, मन को बहलाती सारे जग को अपने रंग में रंगने होली आई नीले-पीले, हरे-गुलाबी कच्चे-पक्के रंगो से भिगोने आई फागुन के इस रंग में डूबा टेसू पहन केसरिया बाना आ धमका प्रकृति को रंगने अपने रंग में चुलबुल बुलबुल नए राग सुना सबको खुशियों से भिगोने आई भूल कर सारे गिले शिकवे सद्भावनाओं के रंग में रंगने रंग -बिरंगी होली आई शोर मचाती, हुल्लड़ करती मस्तानो कि टोली आई रंग उड़ाती, मन को बहलाती रंग-बिरंगी होली आई....
बसंतपंचमी के आते ही प्रकृति में एक नवीन परिवर्तन आने लगता है। दिन बड़े होने लगते हैं, जाड़ा कम होने लगता है और पतझड़ शुरू हो जाता है। माघ पूर्णिमा को होली का डांडा गाड़ा जाता है। आम कि मंजरियों पर भौरें मँडराने लगते हैं, वृक्षों में नई कोपलें फूटने लगती है, और चारों ओर एक नवीनता का अहसास होने लगता है। ऐसे समय पर मनाया जाता है नई उमंग के साथ, रंगों का त्यौहार होली। होली एक सामाजिक एवं धार्मिक त्यौहार के साथ-साथ रंगों का भी त्यौहार है। इस अवसर पर लकड़ी और कंडों का ढेर लगा कर होलिकापूजन किया जाता है फिर उसे जलाया जाता है। इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ भी कहा जाता है। खेत से नए अनाज को लाकर होली कि आग में भूनकर प्रसाद के रूप में दिया जाता है, इस अन्न को होला कहते है। हिरण्यकश्यपु की बहिन होलिका को वरदान मिला था कि उस पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं होगा। अतः वह विष्णुभक्त प्रह्लाद का अंत करने के विचार से उन्हें गोद में लेकर अग्नि के बीच में बैठ गई पर भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका का अंत हुआ। तभी से त्यौहार मनाने की प्रथा चल पड़ी। होली एक आनंद और उल्लास का पर्व है। यह सम्मिलन, मित्रता व एकता का पर्व है। इस दिन सभी द्वेषभाव भूलकर सबसे प्रेम और भाईचारे से मिलते है। एकता ,सद्भावना एवं भाईचारा बनाये रखना इस त्यौहार का मूल उद्देश्य एवं संदेश है। इस दिन अबीर -गुलाल लगा कर सभी एक दूसरे से गले मिलते है। कुछ लोग कीचड़ ,गोबर, मिटटी का प्रयोग कर के एक दूसरे के ह्रदय को चोट पहुचातें है। अतः इन सब का त्याग करना चाहिए। इस दिन आम कि मंजरी और चन्दन को मिला कर खाने का माहात्म्य है। जो लोग फागुन कि पूर्णिमा को हिंडोले में झूलते हुए भगवान के दर्शन करते है ,वे बैकुंठलोक में निवास करते है। अतः हम सभी को पूरे उल्लास व उमंग के साथ इस रंगों से भरे त्यौहार को मनाना चाहिए।
जीवन के दोहरे मापदंडों के कारण नारी अशक्त है पुरुष और नारी के लिए समाज ने अलग-अलग नियम बना पुरुष को दिया खुला आकाश और नारी को घुटन भरा जीवन पुरुष को हर अपराध माफ़ और नारी को नियम,नीति व संस्कारों का बंधन इसीलिए पुरुष अपनी पराकाष्ठाओं को पार कर जाता नारी लोकलाज के डर से सिमट कर कशमकश में डूब जाती इन दोहरे मापदंडों को भूल एक नया मापदंड अपनाना होगा ताकि सदियों से चले आ रहे दोहरे मापदंडों की उलझनों से निकल हर नारी को मान -सम्मान का जीवन मिल सके