Thursday, October 2, 2014

स्त्रियाँ




भोर के सूरज की लालिमा से चुरा कर लाल मोहक रंग 
एक स्त्री भर लेती अपनी माँग में 
और भर जाती एक नयी उमंग उत्साह और स्फूर्ति से 
हर दिन माथे पर बड़ी सी बिंदी,
हाथों में रंग-बिरंगी खनखनाती चूड़ियाँ, 
गले में मंगलसूत्र ,पैरों में रुनझुन करती पायल-बिछिया 
संपूर्ण श्रृंगार में डूब भूल जाती सारे दुःख-दर्द 
पूर्ण रूप से परिवार के लिए समर्पित होने के बाद भी 
अधिकतर उपेक्षा, अपमान का शिकार होती स्त्रियाँ 
फिर भी, सारे गिले-शिकवे भूल 
हर सुबह सूरज की लालिमा से चुरा कर लाल रंग 
नयी आशा का दामन थाम 
माँग भर लेती स्त्रियाँ... 
- साधना 

No comments:

Post a Comment